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समापान-नाम सामायिक, स्थापना सामायिक, प्रष्य सामायिक, क्षेत्र सामायिक, काल सामायिक
और भाव सामायिक । इस प्रकार छह भेवरुप सामायिक होता है । भगवान् जिनेन्द्रदेवने सामायिकके ये छहों पर्चासागर
भेव धर्म और मोक्षको देनेवाले बतलाये हैं। सो हो प्रश्नोत्तरोपासकाचारमें लिखा है[ ११५ ] नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालेषुश्रीजिनः। उक्तं सामायिक भावं षड्विधं धर्ममुक्तिदम् ॥२३॥
इनका विशेष स्वरूप इस प्रकार है जो विद्वान् लोग शुभ-अशुभ विकल्पों के नामों के समूहको सुनकर । राग, द्वेष, मोहका त्याग कर देते हैं उसको नाम सामायिक कहते हैं । जो शुभ और अशुभ चेतन या अचेतनसे, उत्पन्न होते हैं उनको देखकर जो रागद्वेषाविकका त्याग कर देते हैं उनके स्थापना सामायिक होता है। जो लोहा, सोना आदि सब पदार्थों में समान भाव धारण करते हैं उनके व्रव्य सामायिक होता है। यह द्रव्य सामायिक विना समता भावोंके और किसी प्रकार नहीं हो सकता। जो शुभ, अशुभ क्षेत्रमें सुख और दुःखोंके । समूहको पाकर भी राग, द्वेष, मोहका नाश कर देते हैं वह उनका क्षेत्र सामायिक है । जो शीतकालमें वा उष्णकालमें समताभाव धारण करते हैं, सर्वी, गर्मीके कुःखोंको समताभावसे सहन करते हैं उसमें दुःख नहीं मानते। सो काल सामायिक है । तथा जो शत्रु मित्रादिकमें राग द्वेषको सर्वथा छोड़ देते हैं और समताभाव धारण करते हैं उनके भाव सामायिक होता है । इस प्रकार सकलकोति आचार्यने प्रश्नोत्तरोपासकाचारमें सामायिकके छह भेव लिखे हैं। यथा--
शुभेतरविकल्पं यः श्रवा नामकदंबकम् । रागादिकं त्यजेद्धीमान् नामसामायिक लभेत् ।। २४ ॥ दृष्ट्वा शुभाशुभं रूपं चेतनेतरजं हि यः। त्यजेद्रागादिक स स्थापनासामायिकं भवेत् ॥ २५ ॥ लोष्ठहेमादिदृष्टेषु समचित्तं करोति यः। द्रव्यसामायिकं तस्य भवेन्नान्यस्य सर्वथा ॥ २६ ॥