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________________ HT: भारत प्रश्न--कोई ऐसा कहते हैं कि इन्द्रादिक देव सुदर्शन नामके मेरुपर्वतकी पाण्डुका शिलापर जो तीर्थंकर मांसागर । भगवान्का जन्माभिषेक करते हैं सो चनुणिकायिक देव अभिषेकके गंधोदक जलको अपने नेत्रोंसे ललाटसे लगाते हैं । और इस प्रकार लगाते हैं कि वह जल सब उठ जाता है बाकी बिल्कुल नहीं रहता। कोई-कोई ऐसा भी कहते है कि थोड़ा-थोड़ा सबके हिस्सेमें आ जाता है और किसी-किसीके हाथ भी नहीं आता। इसलिये थोड़ा-सा गन्धोदक लेकर मस्तकसे लगा लेना चाहिये और फिर हाथ धो डालना चाहिये। क्योंकि यदि गन्धोवकके हाय किसो बुरे पवार्थसे अथवा पाँव आदिसे लग जावें तो बड़ी अविनय होगी। इसलिये गन्धोदक लगाकर हाथ धो डालना अच्छा है । ऐसा ही उपवेश दूसरोंको दिया करते हैं सो क्या यह बात ठीक है ? समाधान--यह कहना ठीक नहीं है, यह कहना कपोलकलिगत और अजाद भा हुभा है। क्योंकि श्रीऋषभदेवके जन्माभिषेकके गन्धोवकका जल इन्द्रादिक सब देवोंने अपने मस्तकसे लगाया तथा सब शरीरसे लगाया तथा मेरुपर्वतके ऊपर उस गन्धोवकके जलका प्रवाह नदियोंके समान बह निकला । इस बहते हुए जलमें देवोंने स्नान किया। वह जल लेकर परस्पर एक दूसरेके ऊपर डाला। भावार्थ-उस जलमें परस्पर जलक्रीड़ा को और उस गन्धोदकके जलको लेकर स्वर्गमें भेजा । ऐसा वर्णन शास्त्रों में लिखा है । देखो भगवज्जिनसेनाचार्यप्रणीत आदिपुराणके दशवे पर्वमें-- कृतं गंधोदकैरित्थमभिषेकं सुरोत्तमाः । जगतां शांतये शांति घोषयामासुरुच्चकैः ॥ १७॥ । प्रचक्ररुत्तमांगेषु चक्रुः सर्वांगसंगतम् । स्वर्गस्योपायनं चक्रुस्तद्गंधांबु दिवाकसः ॥१८॥ गंधांबुस्नपनाते जयकोलाहलैः समम्। व्यातुक्षीममराः चक्रुः सचूर्णैगंधवारिभिः ॥ ६ ॥ ___लब्ध्यादिपुराणमें भी यही बात लिखी है-- तद्गंधाबु प्रवंधोच्चैरुत्तमांगेषु भक्तिकाः। निधाय सर्वगात्रेष स्वर्गस्योपायनं व्यधुः ॥२०२॥ गंधोदकाभिषेकांते विधायेति सुरेश्वराः। गंधोदकं च बंदिवा पूतं शुद्धै जिनेशिनः ॥२०॥ व्यातुक्षी निर्मलांचक्रुःजयकोलाहलैः समम्। पूरितैः कलशेः भक्त्या सचूर्णेगंधवारिभिः॥२०४।। PRASTERTAIMEGEमहान्यवराse [ ११०
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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