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पर्यासागर । १०५]
। फिर वहाँसे सब मिलकर भगवानकी जन्मपुरीमें आये थे ऐसा सोमसेनछुत लघु पयपुराणके ग्यारहवें अधिकारमें लिखा है
सेन्द्राश्च व्यंतराः सर्वे भवनवासिनस्तथा । ज्योतिषाः सपरिवारा नाना यानेश्च संयुताः॥२८ ।। सौधर्मेन्द्रगहे द्वारं संप्राप्ता विभवान्विताः।
तथा षोडशस्वर्गस्थदेवास्तत्र समागताः ॥ २६ ॥ इस प्रकार वर्णन है । इससे भी सिद्ध होता है कि भवनत्रिक पहले स्वर्गतक जा सकते हैं।
-चर्चा छयानवेवीं प्रश्न-श्री वासुपूज्य तोयंकरको मोक्ष चंपापुरीसे हुई है या राजनमालिका नवीके पास मंदारगिरि पर्वतसे हुई है !
समाधान-श्री वासुपूज्य स्वामी चंपापुरी नगरीके बाहर मंदराचल पर्वतपर जो मनोहर नामका बन है वहाँसे मोक्ष पधारे हैं । जब उनकी आयु एक महीनेको बाकी रह गई थी तब वे अपना योग निरोध कर पचासनसे विराजमान थे तथा अंतमें बहोंसे भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशीको संध्याके समय विशाखा नक्षत्रमें चौरा नर्वे मुनियों सहित मोक्ष पधारे ऐसा श्रीगुणभद्राचार्यविरचित उत्सरपुराणमें ( श्रीवासुपूज्यपुराणमें ) लिखा है।
स्थित्वात्र निष्कियो मासे नया राजनमालिका।
संज्ञायाश्चित्तहारिण्याः पर्यंतावनिवर्तिनि ॥ ५१ ।। अग्रमंदरशैलस्य सानुस्थानविभूषणे । वने मनोहरोद्याने पल्यकासनमाश्रितः ॥५२॥ मासे भाद्रपदे ज्योत्स्ने चतुर्दश्यापराह्नके । विशाखायां ययौ मुक्तिं चतुर्नवतिसंयतैः ॥५३॥
९७-चर्चा सतानवेवीं प्रश्न-उत्कृष्ट, मध्यम तथा जघन्य पात्रके लिये दिये हुए दानका फल तथा कुपात्रके लिए दिये हुए ।