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________________ सागर १०४ ] Lices यहाँ पर क्षोत्र शब्दका अर्थ इक्षु वा ईसका है। सिद्धांतसार प्रदीपकमें भी लिखा हैकालोदे पुष्कराम्भोधौ स्वयंभूरमणार्णवे । केवलं जलसुस्वादं जलौघं च भवेत्सदा ॥ क्षीराब्धौ क्षीरसुस्वादु सद्रसांभो भवेन्महत्। घृतस्वादसमस्निग्धं जलं स्थाद घृतवारिधौ ॥ एतेभ्यः सपूर्वाब्धिभ्यः परे संख्यातसागराः । भवंतीक्षुरसस्वादसमाना मधुराः शुभाः ॥ ६५ - चर्चा पिचानवेवीं प्रश्न - भवनवासो, व्यंतर और ज्योतिष्क ये तीन प्रकारके देव भवनत्रिक कहलाते हैं ये तीनों प्रकार के वे अपनी शक्ति द्वारा ऊपर की ओर कहाँतक गमन कर सकते हैं। तीर्थंकरोंके जन्माभिषेक के समय पांडुकशिलातक तो ये देव जाते ही हैं परन्तु इसके ऊपर जा सकते हैं या नहीं समाधान - ऊपर लिखे हुए ये तीनों प्रकारके देव अपनी इच्छासे सौधर्म स्वर्ग तक गमन कर सकते हैं। सौधर्म स्वर्गसे ऊपर वे अपनी इच्छासे गमन नहीं कर सकते। यदि स्थर्मोके रहनेवाले देव इनको आकर ले जाँय तो उनके ले जाये गये जा सकते हैं। परन्तु इस प्रकार ले जाये गये भी सोलहवें अच्युत स्वर्गं तक जा सकते हैं सो भी अपनी शक्तिसे नहीं । तथा सोलहवें स्वर्गसे आगे दूसरे देवोंके द्वारा ले जाने पर भी नहीं जा सकते। यह नियम है सो ही सिद्धांतसारबीपकमें चौदहवीं संधिमें लिखा हैक्रियामात्रोवधिस्तेषामधोलोकेऽपि जायते । भावना व्यंतरा ज्योतिष्का गच्छंति स्वयं क्वचित् ॥ २० ॥ तृतीयक्षितिपर्यंत मधोलोके स्वकार्यतः 1 सोधर्मेशान कल्पांत मूर्ध्वलोके निजेच्छया ॥ २१ ॥ तेपि सर्वे सुरैर्नीता भावनायास्त्रयोऽमराः । षोडशस्वर्गपर्यंतं प्रीत्या यांति सुखाप्तये ॥ २२ ॥ देव लोग तीर्थंकरोंके जन्म समय में आते हैं सो मुनिसुव्रत के जन्म समय में जो चार प्रकारके देव आये थे उनमें से भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क आदि सब देव पहले सौधर्म इंत्रके दरवाजे पर आकर इकट्ठे हुए ये [ १०४
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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