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वर्गासागर
1 वानका फल तो प्रसिद्ध है प्रायः सबने सुना है। परंतु लोभी पुरुषके लिए दान देनेवालेको फैसो शोभा । होती है ?
समाधान-जो पुरुष लोभी पुरुषके लिये दान देता है उसको शोभा आचार्य श्रीकुन्दकुन्द स्वामीने मृतक पुरुषके विमानके समान ( विमानके आकारमें बनाई हुई अस्थोके समान ) बतलाई है। जिस प्रकार मृतक पुरुषके विमानके आगे रुपये पैसे बखेरे जाते हैं बड़ी शोभा की जाती है, चांडाल आदि उसका यश भी गाते हैं और सब लोग उसको शोभा बढ़ाते हैं परन्तु घरवाले मालिकके लिये तो वह शान ( बखेर ) और वह शोभा आदि सब छाती कूटने और सिर धुननेके लिये ही होती है तथा कला-कलाकर महा दुल उत्पन्न करती है ऐसी ही शोभा लोभी पुरुषको दान देने की है। इसलिये सत्पुरुषों के लिए दिया हुआ दान तो कल्पवृक्षाविकके सुखोंको उत्पन्न करता है और लोभोके लिये दिया हुआ दान ऊपर लिखे अनुसार फल देता है । सो ही रयण। सारमें लिखा है
सप्पुस्साणं दाणं कप्पतरूणं फलाण सोहं वा । लोहाणं दाणं जइ विमाणसोहा स जाणेह ॥ २४ ॥
८-चर्चा अठानवेवों प्रश्न-दर्शन और ज्ञान तो जीवका लक्षण है परन्तु चारित्र किसका लक्षण है ?
समाधान-चारित्र भी जीवका निजधर्म है क्योंकि अपनी आत्माका निजाघरण रूप ही चारित्र है। समस्त जीयोंसे समान भाव होना, रागद्वेष रहित, अनिष्ट बुरिकर रहित भाव ही निश्चयचारित्र है । सो हो आरमाका निजधर्म है। इसलिये ज्ञानदर्शन और चारित्र ये तीनों हो आत्माके निजस्वरूप है सो हो षट्पाइडके मोक्षप्राभूसमें लिखा है
चरणं हवइ सधम्मो धम्मो सो हवइ अप्पसमभावो । सो रायरोसरहिओ जीवस्स अणण्णपरिणामो ॥ ५० ॥
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