________________
मासके सोलाह भागों से छह भाग ३३००३, श्वासोच्छ्वास होते हैं। यदि एक श्वासके कुछ अधिक करोड़ों
भाग करनेसे जो एक भाग आता है उसको आवलो कहते हैं और एक आवलोमें असंख्यात समय होते हैं। ऐसे में बर्चासागर
तीन समय तक अधिकसे अधिक विग्रहगतिमें यह जोव अनाहारक रहता है । इसलिये पौने दो घडीमें आहार [१०]
लेता है यह बात सर्वथा मिथ्या है। अतएव ऐसा श्रद्धान कभी नहीं करना चाहिये। जो शास्त्रों में लिखा है। उसीके अनुसार श्रद्धान करना चाहिये।
६०-चर्चा नब्वेवीं प्रश्न-ग्यारहवीं प्रतिमाधारी श्रावकके दो भेव है-शुल्लक और ऐलक। इनमेंसे क्षुल्लक तो बैठकर पात्रमें रक्खे हुए भोजनको अपने हाथसे गस्सा उठाकर भोजन करता ही है परंतु ऐलक श्रावक किस प्रकार भोजन करता है या उसे किस प्रकार भोजन करनेका अधिकार है ?
समाधान-ऐलक श्रावक भी बैठकर पात्रमें रक्खे हुये भोजन पानादिकको ग्रहण करता है। अन्तर केवल इतना है कि क्षुल्लक अपने हाथसे हो उठाकर ग्रहण करता है और ऐलक दूसरेके हाथके द्वारा अपने हाथमें रक्खे हुए भोजनको ग्रहण करता है परन्तु यह बैठकर ही प्रहण करता है । मुनिराजके समान खड़े होकर भोजन नहीं लेता ऐसा सिद्धांत है। यथा
कोपीनोऽसी रात्रिप्रतिमायोगं करोति नियमेन ।
लोचं पिच्छं धृत्वा भुक्ते यु पविश्य पाणिपुटे ॥ २६ ॥ इसी प्रकार धर्मोपवेश पीयूषव कर नामके श्रावकाचारमें लिखा है। यः कोपीन धरोरात्रिप्रतिमायोगमुत्तमम् । करोति नियमेनोच्चैः सदासौ धीरमानसः ॥२२॥
लोचं पिच्छं च संधत्ते भुक्तेऽसौ चोपविश्य वै । पाणिपात्रेण पूतात्मा ब्रह्मचारी स चोत्तमः ।। २३ ॥
६१ चर्चा इक्यानवेवीं प्रश्न-इस मध्यलोकमें लवणोषि आदि असंख्यात समुन्द्र हैं उनमेंसे लवणोवधि, कालोदघि और "
..