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________________ सागर [ ९९ ] Pajee जाते हैं । परन्तु पीनेवाले प्रभावी पुरुष उसे अग्निमें गर्म कर छोकर पीसकर पीते हैं फिर भला उनके पापका क्या ठिकाना है ? इसके सिवाय द्राक्षासव, लोहासव आदि अनेक प्रकारका आसव निकलवा कर लोग पिया करते हैं सो वह भी मचके ही समान है क्योंकि अनन्त निगोद जीवोंका तथा असंख्यात जस जीवोंका घात होनेपर आसव तैयार होता है और उसे लोग पी जाते हैं । वैद्यक शास्त्रोंके अनुसार इसके बनानेमें भी मद्यके समान ही भारी हिंसा होती है। इसका केवल नाम ही दूसरा है बाकी गुण सब मद्य के हैं । इसलिये बुद्धिमानोंको इसका दूरसे ही स्याग कर देना चाहिये । तथा जिन्हें नरक, निगोव आदि दुर्गतियोंमें जाना है वे पीते हो हैं । इसके सिवाय हुक्का, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट आदिकोंका पीना भी महा हिंसाका कारण है। भ्रष्टाचारका फैलानेवाला, उछिष्टपान करानेवाला और निमोदका घर है इसलिये जैनकुलवालोंको तो इसका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये क्योंकि इसके पीनेवाले जैनी नहीं रह सकते उन्हें अकुलीन हो समझना चाहिये । चर्चा नवासीवीं प्रश्न –— लोग कहते हैं कि संसारी जीव आयु पूर्ण कर पौने दो घड़ीमें जाकर पुद्गलको ग्रहण करनेरूप आहारको ग्रहण करते हैं सो श्या ठीक है ? समाधान-—यह कहना असत्य है शास्त्रोक्त नहीं है । क्योंकि पूर्व शरीरको छोड़कर नवीन गति नवीन शरोरको ग्रहण करनेके लिये मार्ग में अधिक से अधिक तीन समय तक यह जीव अनाहारक रहता है । अधिक से अधिक चौथे समय में नवीन पुद्गलोंको अवश्य ग्रहण कर लेता है । वही आहार है सो ही मोक्षशास्त्रमें लिखा है एक दो त्रीन् वानाहारकः । - - अध्याय २ सूत्र सं० ३० आहार ग्रहण करनेके बाद फिर अन्य यथायोग्य पर्याप्तियोंको क्रमसे धारण करता है। आहार पर्याप्तिके बाद शरीर पर्याप्तिको धारण करता है । तीन हजार सात सौ तिहत्तरि श्वासोच्छ्वासको दो घड़ियाँ विश्वासोच्छ्वासका एक अंतर्मुहूर्त होता है । तथा पौने दो था एक मुहूर्त होता है तीन हजार छः घड़ीके तीन हजार तीन सौ तथा एक [ ९९
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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