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________________ पासागर ८२३ और भगवान जिनेन्द्रदेवने कहे हैं वे सब पुण्यके अंश हैं अर्थात् पुण्यात्रवके कारण हैं। सो ही रलाकरमें लिखा है सम्यक्त्वं जिनपूजनं च सुतपो दान दया संयमः, चारित्राचरणे त्रयोदशविधौ सम्यकप्रकरोधमः। पंचज्ञानमतिः कषायविजयः षद्रव्यमर्थान्नव, ऐते हि जिनभाषिताः शुभकरा पुण्यांशवो चास्त्रवाः॥ ये तो सब पुण्यानवके कारण हैं तथा आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञाएँ, माया, मिम्या, निदान ये तीन शल्य, क्रोषादिक पच्चोस कषाय, मन, वचन, कायको क्रियारूप तीन वंश, राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा, स्त्रोकथा ये चार विकथाएँ, कुष्ण, नोल, कापोत ये तोन लेश्याएं, रसगारव, ऋद्धिगारव, तप-। गोरख ये तीन गारब, एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान ये पांच मिन्यात्व, पांच प्रकारका कार्म, हलका, भारो, नरम, कठोर, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रक्षा, खट्टा, मोठा, कडवा. चरमरा, कषाय दुर्गध, सचेतन, अचेतन, मिथ ये तेईस पांचों इन्द्रियोंके विषय, हिंसा, मूठ, चोरो, कुशील, परिग्रह ये पांच पाप, मोह, स्नेह, विवादकारण, कुमतिज्ञान, अहंकार, पन्द्रह प्रमाव अथवा साडे सेंतीस हजार ३७५०० । प्रमाद, इंधन और अग्नि के द्वारा व्यापार करना, कलह, आर्तध्यान, रोबध्यान आदि सब पापके अंश अथवा पापात्राषके कारण हैं । सो हो रत्नाकरमें लिखा है। संज्ञाशल्यकषायदंडविकथा लेश्या प्रयो गारवा, मिथ्यापञ्चकर्पचकामविषयाः पञ्चैव हिंसादयः। मोहस्नेहविषादहेतुकुमतिः गर्व प्रमादाखिलाः, इन्ध्यग्निव्यवसायहेतुकलहाः पापांशवोचास्त्रवाः॥ ११. गारव अभिमानको कहते हैं, ऋद्धियों का अभिमान, तपका अभिमान और शरीरका अभिमान । २. शोषण, संतापन, उच्चाटन, वशीकरण, मोहन ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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