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ऐसा समान कर पर लिखे हुए पापके भाववॉका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये तवा असबभूतव्यवहारनयको अपेक्षासे पुण्यालबोंके कारणोंको ग्रहण करना चाहिये । तथा शुद्धनयसे पुण्य पाप वोनों हो त्याज्य हैं।
८३-चर्चा तिरासीवीं | प्रश्न-श्रावकके बारह व्रतोंमें विग्नत और बेशवत और दो व्रत अलग-अलग गुणवत हैं। दिग्धतम योमनाविकके द्वारा विशा विविशाओंका प्रसार किया जाता है मया मनाने मार भाले जानेका स्याग किया। जाता है और देशवतको पालन करनेवाला देशोंका प्रमाण करता है। परन्तु मर्यात तो दिखतमें ही हो जाती है उसी क्षेत्रमें वह गमनागमन करता है फिर बेशोंके प्रमाण करनेका क्या कारण है ? वेश भी तो विशामें ही आ गये। इस प्रकार ये दोनों हो त एक रूप ही होते हैं इनमें कुछ विशेषता नहीं होती।
समाधान-विग्वतमें तो समस्त विशाओंका प्रमाण हो जाता है फिर भी देशवतमें जो देशोंकी मर्यादा की जाती है उसका अभिप्राय यह है कि पहले जो विशाओंको मर्यादा की थी उसमें यदि कोई म्लेच्छ देश हो। अथवा अनार्य वैश हो जहाँपर कि अपने वत और सदाचरणोंका भंग होता हो तो ऐसे अधार्मिक वेशमें लोभाविकके कारण भी कभी नहीं जाना चाहिये । देशव्रत धारण करनेका यही अभिप्राय है सो ही वसुविधायकाचारमें लिखा है।
वयभंगकारणं होई जम्मिदेसम्मि तत्थ णियमेण ।
कीरइ गमणिवित्ती तं जाण गुणव्वयं विदियं ॥२१॥ देशवतका यही अभिप्राय है और कुछ अभिप्राय नहीं है। दिखतकी मर्यादा जन्म भरके लिये की जाती है और देशवतकी मर्यादा कुछ कालके लिये उसके भीतर की जाती है। यह दिव्रत और देशवत में अन्तर है। इसके सिवाय श्रीवसुनंदिवावकाचारमें देशव्रतका लक्षण लिखा सो भो ठीक है क्योंकि जहाँपर सम्यक्त्व नष्ट हो जाय अथवा वतोंका दोष लग जाय ऐसे देशोंमें जानेका निषेध अन्य शास्त्रोंमें भी है। इसी कारण वर्तमान समयमें समुद्र यात्राका निषेध किया जाता है क्योंकि वर्तमान समुद्रयात्राके जो जो साधन हैं वे सब सम्यक्त्वका घात करनेवाले है क्योंकि यहाँपर देवदर्शन, पात्रदान आदिका कुछ साधन नहीं है इसी प्रकार प्रतोंके घातक हैं क्योंकि खाने पीनेके साधन होटल ही हैं और वहाँपर मांसादिकका स्पर्श बच नहीं सकता। रसोई बनानेवाले मुसलमान और भंगियोंका स्पर्श बच नहीं सकता। यदि कोई स्वयं बनाना चाहे तो भी इनका स्पर्श बच नहीं सकता। इसलिये ऐसे देशोंमे जानेका स्याग करना मो येशवत है।
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