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________________ . २६६ तुह विरहिं सा तुहुं उज्जाणि मा ते जि पंडिअ तोडिअगुडमुह दहिअक्खयघण दारविवजिअ विसय दारुणदेहदाहप दिव्व कहिं ते मत्त दीसइ उववणि दीसइ सुरधनु दीसए एस तरुणि दीहरच्छिआए दीहरभुअदंड दुइमरिउमहि दुद्धरवारिबुट्टि देक्खिवि वेल्लडी धवलनिहेण नच्चाविअचंदण नच्चिर कीरमिहुण नच्चिर किसलकरि नमिरसुरासुरिंद न मुणिज्जइ गलाउ नयणविलासिण नरवरिंद तुह नरु लच्छिविव नवकयलीपत्तिहिं नवकुवलयनयण नवकोइलरवा नवघणभमभमंत नवघणमालिअत्ति नवचंदलेह नवमयरंदपाण नहकोलस्स व 'छन्दोऽनुशासनम् । 6.20.44 | नहयलम्मि सयल 7.9.1 नहयलवराह 5.20.3|नहलच्छिभाल 6.20.26 | नारिहुं वयणुल्लई 7.30.1 | नासंतिहिं समरा 7.31.1 | निअइ झुणइ 4.86.1 निअजुबई गणदु 5.21.2 | निअवि वयणु 6.20.15 निकंदल कय 6.19.44 | निच्छइं पिअसहि 4.47.1 | निच्छिवि करिवि 6.19.34 | निज्झाइअइ जत्थ 7.52.1 | निद्दड्ड डड्ड 7.41.1 | निब्भरदलिअ 4.31.1 | निम्मलनाणदिट्ठि 6.19.20 | निम्मलि गयणि 5.32.1 | निसुणिअ माई 4.53.1 | पंडिगंडयल 4.65.1 | पइं विणु तहि 7.10.1 | पई ससिवयणिए 4.34.1 | पञ्चसगयवरु 4.38.1 | पडिहअबहुविह 7.40.1 | पत्तउ एहु वसंतउ 4.36.1 | पत्तलच्छि सुहयं 7.34.1 | पनमध पनयपकु 7.20.1 पयडिअलंछणमय 6.25.1 | परगुणगहणु 4.83.3 | परनरमुहपेच्छण 5.30.1 पर अपंचमसवण 4.58.1 परिमललुद्ध 7.65.1 | पलिअ केस 4.71.1 | पवणपहल्लिर 4.20.4 | पसरदु वई 4.79.1 6.19.46 6.19.48 -7.18.1 . 6.20.39 6.19.10 7.60.1 6.20.2 4.87.2 6.20.27 5.15.1 4.76.2 '5.31.1 4.88.1 4.35.1 6.19.16 6.20.20 4.87.7 6.19.4 6.28.1 1.10.1 7.15.2 6.20.36 4.27.2 4.1.5 7.56.1 6.31.1 6.19.53 4.87.4 4.72.1 6.20.51 4.16.1 7.61.1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090113
Book TitleChandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH D Velankar
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1961
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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