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किंचित् प्रासंगिक सन १९३० में जब मेरा कार्यक्षेत्र, विश्वभारती के महान् द्रष्टा गुरुदेव रवीन्द्रनाथके विज्ञानतीर्थ शान्तिनिकेतन हुआ और वहां पर बैठ कर इस सिंघी जैन ग्रन्थ मालाके प्रकाशनका कार्य हाथमें लिया, तब मैंने फिर इस ग्रन्थका भी प्रकाशन इसी ग्रन्थमालाके द्वारा करना निश्चित किया। अनेक वर्ष पूर्व किया गया वह संकल्प इस प्रकार अब यह पूर्ण हो कर सफल हो रहा है। श्रेयस्कर संकल्प कभी न कभी सिद्ध होता है इस उक्तिकी सत्यता का अनुभव श्रेयोर्थिके मन को सन्तुष्ट करे यह खाभाविक है।
____ भारतीय विद्या भवनके संयुक्त डायरेक्टर और मेरे सहकारी सुहृन्मित्र प्रा० वेलणकर अपनी प्रौढ विद्वत्ताके लिये सुप्रसिद्ध हैं। छन्दःशास्त्र विषयक इनका अध्ययन-मनन बहुत गभीर है । इस विषयके कई प्राचीन ग्रन्थ इनके द्वारा संशोधित एवं संपादित हो कर प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत सिंघी जैन ग्रन्थ मालाके समान ही मेरे द्वारा संचालित और संपादित राजस्थान पुरातन ग्रन्थ माला में इनके संपादनखरूप ३-४ छन्दोग्रन्थ छप रहे हैं । प्रसंगवश हेमचन्द्र सूरिके इस सर्वाङ्ग परिपूर्ण छन्दःशास्त्रके प्रकाशनके विषयमें बात चली तो इन्होंने बडे उत्साह के साथ इस कार्यके करनेका अपना मनोरथ प्रकट किया। इस ग्रन्थके संपादनके लिये इनसे अधिक योग्य व्यक्ति और कौन हो सकता है, यह सोच कर मैंने इनके कर्तव्यशील हाथों में इसका संपादन कार्य समर्पण किया जो परिपूर्ण हो कर आज विद्वानों के करकमल में उपस्थित है। मर्मज्ञ विद्वान् इस संपादन कार्यका मूल्यांकन स्वयं कर सकते हैं।
मैं तो केवल यहां इनके प्रति अपना सौहार्द पूर्ण उपकृत • भाव प्रकट करना चाहता हूं कि इन्होंने इस ग्रन्थरत्नका, इसके अनुरूप सुन्दर संपादन कर, सिंघी जैन ग्रन्थ माला की मुक्तावलिमें जो एक मूल्यवान् मणिका निवेश किया है मैं उसके लिये अत्यंत कृतज्ञ हूं।
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चैत्र शुक्ला रामनवमी, सं. २०१७ दिनांक २५ मार्च, १९६१
भा. वि. भ. बंबई
। -मुनि जिन विजयजी
- आभार प्रदर्शन - इस ग्रन्थके प्रकाशनके व्ययमें भारत सरकारकी ओरसे अर्द्धभाग प्राप्त हुआ है, जिसके लिये हम भारत सरकारके प्रति, अपना सादर आभार भाव प्रदर्शित करते हैं।
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