________________
चौथा अध्याय इके ष्टोपदेशव नष्ट पनि । गारने अजार
रो ॥ अष्टगुणान्वित सिद्धर स्मरिसिद । अष्टमजिन सिद्ध काव्य ॥ यक शश्चतिदेविय करविडिदादि । वृषभजिनेशन काव्य ।। अश रोक्ष र सिद्धत्व बडर्दू बाळुव काव्य । ऋषिवंशदादि भूवलय ॥२॥ मू* रुवेळे योळु सामायिकवेनिल्व । वीरजिनेन्द्रदारियद ॥ सेरि ए* वृतियतिशयदनुभव | सारभव्यर दिव्य काव्य ॥३॥ लक्षवरियुत स्वसमयवद सारि । अक्षरदंकदोवे र सि* ॥ शिक्षयोळेविंद्विय मत्तु मनवनु । लक्षणविस्तब्धगोळिसि ॥४॥ तनुवनु मरेयुत जिनरूपे नानेब । धनविद्य यनुभववागे ॥ म नवेसिमहासनवागिरलमलात्म । जिननंते कमलदासनदि ॥५॥
इनवैभवदिद कुळितु ॥६॥ जिननंते कायोत्सर्गदलि ॥७॥ अनुदिनदम्यासबलदि ॥८॥ दिनदिनयोगहेच्चुतिरे ॥६॥ इन तैतपिन ज्योति ॥१०॥ घनवागि बेळमुलिरतु ॥१॥ तनगेताने ब्रह्मनेनुव ॥१२॥ जिन धर्मदनुभव बरलु ॥१३॥ ऋगव देहब मरेतिहरु ॥१४॥ एरिणकेगे बारध्यात्म ॥१॥ घनप्रतिक्रमण तानागे ॥१६॥ चिनुमय मुद्रेयदोदगे ॥१७॥ घनरत्न मूरर बेळकु ॥१८॥ तनगेताने बंदु बेळगे ॥१६॥ मनुमयनुपटल करगे ॥२०॥ जिननाथनोरेद भूवलय ॥२१॥ तनुविनोळात्म भूवलय ॥२२॥ वेनुर्तितु निलुव कुळिरुव ॥२३॥
तनुवदे स्वसमय सार ॥२४॥ न* प्रवदकंदंते स्वयम् परिपूर्णद। अवयवत्रदे शुद्ध गु* पद ॥ अवतार स्थानद हदिनाल्करत्नद । चिनुमय सिद्ध सिद्धांत ॥२५॥ त नुवनु परदरियुत प्रापर। दनुरागवनु तोरेदाग ॥ जिन र सिद्धर रूपिननुभव हेच्चुत । तनु रूपिनंतात्म रूप ॥२६॥ कर रगुवुदास्रव बरुव बंधवदिल्ल । निराकुलतेय पद्म वै । सरमालेयते तन्नेदेयलिकारणबाग । अरुहनपददंग गुरिणत ॥२७॥ दल रतरवाद अद्भुतपरिणामद । सरस संपदवेल्न अव न* ॥ हरुषवनेरिप समयद लधियु। बरुवागना अंतरात्म ॥२८॥
वरुवाग प्रबनतरात्म ॥२६॥ परिणाम लधियागुवदु ॥३०॥ बरलरहंत तानेनुव ॥३॥ वरुषवर्द्धनकादि एनुव ॥३२॥ बरे बरुवाग तन्नात्म ॥३३॥ गुरुवादे जगकेएंदेनुव ॥३४॥ अरहंतरनु कंडेनेनुव ॥३॥ परिशुद्ध नाने एंदेनुष ॥३६॥ परमात्म पदवडनुव ॥३७॥ गुरुपद दोयितेबेनुव ॥३८॥ सिरियायतुज्ञानवे दनुव ॥३६॥ परममंगलनाल्कु एनुव ॥४०॥
परमात्म चरण भूवलय ॥४॥ ता नु तन्नंद पडेव कार्यदोळिर्प । आनन्द शाश्वत सुख म ॥तानु तन्निदले तनगागि पोंदुव । तानल्लदन्यरिगरिया ॥४२॥ सिवनव बाश्वत निर्मल नित्यन् । भवयनेल्लय केडिसुय ह ॥अविरल सुखसिद्धियवने महादेव । अवनादि मंगल भद्र ॥४३॥ रिजियाशेय होडविरुव चिन्मयनु । शुद्धत्ववेल्लमह __ श री ॥ बुद्धिद्धियाचार्य पाठक साधुवु । शुद्ध सम्यक्त्वपसारा ॥४४॥