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सिरि भूवस्खय
सर्वार्थ सिद्धिसंघ सोर-विली नगेबंद ध्यानदनुभदिदलि । धनवाद यथाल्यात न निसे॥ गुरणस्थानबेरुख परमावधियागे । जिनरयथाख्यातवदु रदेतोरुत जारुतबरतिर्प । चारित्रदंतल्लवद् ॥ शुरन योगददारिइंदसद । चारित्रसार भूवलय
सेरुत गुरणस्थानदन ॥५४॥ सारात्म चारित्रयोग ॥५५॥ भरिवेभवदात्मभोग ॥५६॥ दारियसिद्ध लोकाग्र ॥७॥ नेर कषायवियोग ॥५॥ शूर कषायद भाव ॥५६॥ दारिये शद्धविशेष ॥६०॥ चारित्रवे यथाख्यात ॥१॥ दूरपूर्णतेयाप्रयोग ॥६२॥ शरअयोगीकेवलियु ॥६३॥ प्रारेंद्र ग्रणास्थानदेय ।।६४॥ शूररध्यात्मस्वातन्त्र्य ॥६५॥ गारादसंसारनाश ॥६६॥ नेरदेदेहर्वाजतबु ॥६७॥ पदंडदे कपाटा सारततर लोकपूरणे ॥६६॥
वेरिद बळिक सिद्धत्य ॥७॥ पपूरणं कुभदेम्भत्नाल्कु लक्ष । वशद नौवमृत शरावे॥य हा बदरोळगे अंधानु आकाशदि । नेदचितामणि रत्न भ भद्रवागि बिद्दन्ते मानवदेह । प्रभवनागलु बटुिंद ला ॥ उभयभवार्थ साधनेय तरद्वय । शुभमंगललोक पूर्ण
॥७२॥ निज्ञान चारित्रमूरंग । स्वर्शमरिण सोकलाग ॥ मर्
कट मानवनावन्ते मानव । स्वर्मनर्वाळवदेनरिदे । रखियमेलिई घरेयन्तरंगव । परिपरियणविनविष या । वरिदतन्नात्मन दर्शनबेरसिद । धरेयग्र लोकब होन्द मरवादतिशयथावैभव । वामहात्मरिगिल्लवागे। प्रेम चराचरवन्नेल्ल कारणप। काामान माक्षव पान्दि
भामयोळ कूडुवनात्म ७६॥ प्रेमादिगळगेल्द कामी ॥७॥ श्रीमयसुख सिद्ध भद्र ॥७॥ प्रा महात्मनु भूमियळिद ।।७।। सीमेयगडिदान्टिदभव ।।८०11 नेमदे चिरकालविरुव ॥१॥ स्वामियेजगदादिगुरुतु ॥५२॥ राम लक्ष्मरण हृदयाबज ॥३॥ नामरूपगळे ल्लयळिद ॥५४॥ कामसंनिभनल्लि बेरेद ॥६५॥ गोमटेश्वरनय्य वृषभ ॥६॥ श्री महासूक्ष्मस्वरूप ॥७॥
प्रामहिमनु श्री अनंत ॥८॥ भूमिकालातीत संज्ञा ॥६॥ स्वामि अनन्तकिंवलय ॥६॥ रि द्विवभवलि ज्ञान साम्राज्य । शुद्धदर्शनद अन्
का होवे चारित्रय देहद सेरेमने ।। इदरुबंधर्वाळवद्ध ३. नुविद्द रेनबनमलात्म संपद । जिननन्ददे तानक प बुध ॥ दनुभव होन्बुवध्यात्मदाळिरुवाग 1 घनतेय देहवळियुद्ध रुख मुनिमार्गदारकेयिहदेह । सेरुतलात्मन बळिय ॥ सा 1. बनावाग कारागहतल्ल ॥ सेरिरुवात्मन विडिसे
NE31 यविनिसिल्लदे ध्यानदोळा योगि । नयमार्गवनु बिडदिरव नानियतबोळात्मनो बाळ्वाग ध्यानाग्नि । लयमाळपदघवनेललबनु ॥ शवागलाध्यान तनु कायोत्सर्ग । दसमान पल्यंकय गो वशवेरडरोळोंन्यासनकोळगिई । रस परिपूर्णनागुवनु
वशव रागवनु चितिपनु ॥६६॥ स्वसमाधियोळगे निल्लुवतु ॥७॥ स्वसंपूर्णनागुतलिवनु ॥६॥ हुसिमार्गवनु तोरेदिहनु ॥६॥ बशिवन अपराधगळनुम् ॥१०० यसेवनु कर्म दंडवनु ॥१०॥ होस वीक्षेवडेदनन्तिमनु ॥१०२।। यशवे लक्ष्यवनु साधिपनु ॥१३॥ होसदाद गुरपदोळगवनु ॥१०४॥ रससिद्धियनु बेडदिनु ॥१०॥ कुसुमकोदंडवल्लणनु ॥१०॥ होसहोसपरिचितिपनु ॥१०७॥
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