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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बेंगलोर-दिस्ती अत्यन्त सुन्दर स्त्रियों के प्रत्येक अंगोपांगादिक के मर्माग का सुन्दर रूप से वर्णन । के समय में उनके पिता भगवान वृषभदेव और उनकी पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी करके भंगाररस का प्रत्युत्तम विवेचन किया था। उस काल के कई विद्वान् बड़े दोनों ब्रह्मचारिणी चारों जन मिलकर काम कला की चर्चा करने से इस भूवलय सुन्दर बंग से स्त्रियों का वर्णन करने वाले परस्पर में कहने लगे कि ये मुनि
में काम कला के बारे में जो विवेचन पाने वाला है वह अत्यन्त सुन्दर और काम विकारी अवश्य होंगे। ऐसो जनता के मन में शंकास्पद चर्चा उत्पन्न हई
गृहस्थों के लिए अनुकरणीय है। और यह बात सर्वत्र फेल गई। यहीं तक नहीं बल्कि यह बात धीरे २ जिनसेन
गृहस्थों की भोगादि क्रियायों में वीर्य वृद्धि के लिए स्खलन होने से प्राचार्य के कानों में भी जा पहुंची। तब जिनसेन प्राचार्य पाश्चर्य चकित होकर
शरीर दुर्बल होता है। वे पुनः तत्कालीन वीर्य की वृद्धि के लिए प्रादुर्वेद कहने लगे। केवल एक हो टिपर यदि यह दोष या जाता तो कोई
तथा प्रौषधादि सेवन से सुखी होंगे। अपने समान अर्थात् बाहुबलि के समान दोष नहीं था । परन्तु संपूर्ण दिगम्बर मुद्रा पर यह दोष लगाना है, यह ठीक नहीं
शरीर बना लेने की ही अाशा गोम्मटदेव की थी। है। क्योंकि यह धर्म को कलंकित करने वाला है। इस तरह जिनसेन प्राचार्य
श्री भूवलय में प्राने वाली काम कला और आयुर्वेद ये दोनों अनादि मन में सोचकर राजस्थान में चले आये और उस राजा को पाशा दी कि कल
काल से भगवान को वाणी के द्वारा चले आये हैं और अनन्त काल तक चलते एक सभा बुला कर सभी युवक और युवतियों को लाकर बिठा देना और उनके
रहेंगे। इसलिए ये तीनों काल में अहिंसात्मक ही रहेंगे। क्योंकि जिनेन्द्र देव नीचे छोटी २ चटाई विद्या देना । इस प्रकार पाजा पाते ही राजा ने तुरन्त ही सभी तैयार करवा दिया। तब पाचार्य जिनसेन ने खड़े होकर कहा कि हम धर्म
ने सभी जीवों पर समान दयालु होने के कारण एक चींटी से लेकर सम्पूर्ण अर्थ तथा काम इन तीनों पुरुषाथों पर व्याख्यान देंगे। इस तरह पहले अपने
प्राणी मात्र पर अर्थात् मनुष्य पर जिस जिस समय में रोगादिक बाधा हो जाती व्याख्यान की भूमिका समझा दी। तत्पश्चात् धर्म और प्रर्य को गौण करके है उस समय उन सब रोगों को नाश करने वाला पुष्पायुर्वेद को बतलाया है। काम पुरुषार्य का विवेचन करेंगे । ऐसा कहकर काम पुरुषार्थ के श्रृंगार रस
उसके श्री भूवलय के चौथे खण्ड में एक लाख कानड़ी श्लोक हैं। इन्हीं श्लोकों का वर्णन इस तरह किया कि उस सभा में बैठे हुए सभी युवक और युवतियां
को संशोधक महोदय ने उसमें से निकाल कर अपने पास रक्खा है। इस श्लोक अपने पाप को भूनकर मुह खोलकर सुनने में दत्तचित्त हो मये और कार्याध को संशोधक महोदय ने सरकार को अर्पण कर दिया है। भारत की सरकार ने होकर परक्शता के कारण स्वयं हो चटाई पर बीर्यपात कर चुके।
इस ग्रन्थ को अनुवाद करने के लिए सर्वार्थसिद्धि संघ, विश्वेश्वरपुर सकल बंगइस तरह जिनसेन प्राचार्य का उपदेश समाप्त होते ही बैठे हुए युगक
सौर को सौंप दिया है। यह ग्रन्थ अब जल्दी ही क्रम से उद्धृत होकर जनता के और युवतियों के उठने पर घटाई पर गिरे हुए युवकों के बीर्य तथा स्त्रियों के हाथ में आयेगा। अब उस काम कला और आयुर्वेद के साथ शब्द शास्त्र भगरज को देखकर राजा और सब प्रजा परिवार सहित विस्मित होकर कहा कि बद्गीता (पांच भाषायों में) और भगवान वृषभदेव के द्वारा कही हुई पुरु गीता, देखो जिनसेन प्राचार्य के इन्द्रियों पर विकार है या नहीं? किन्तु जिनसेन
श्री नेमिनाथ भगवान के द्वारा अपने भाई श्री कृष्ण को कही हुई नेमि गीता, भाचार्य के लिय में किसी प्रकार का भी विकार नहीं दीख पड़ा। तब राजा ने द्वारका के कृष्णा के कुरक्षेत्र में कही हुई भगवद्गीता, और भगवान महावीर के उन्हें सच्चा महात्मा कह कर प्राचार्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि पाप ही एक द्वारा गौतम गणधर को कही हुई, गौतम गणघर के द्वारा एिक राजा को कहीं सच्चे महात्मा है। राजा व सारे मा परिवारले इस प्रकार अनेक स्तुति को निकृष्ट हुई और वेरिणक राजा के द्वारा अपनी रानी चेलना देवी को कहो हई भगवान कराल पंचम काल में भी ऐसे महात्मा ने इस भरत खण्ड में जन्म लिया था तब महावीर गीता को कहा है। जक्की लक्की पब्बे और उसका पति राजा सईखूषम तीर्थंकर के समय में गोम्मट देव अर्थात् बाहुबलि प्रादि बज वृषभ नाराच गोट्टा शिवमार प्रथम अमोघवर्ष इन दोनों दम्पतियों को उपदेश की हुई कुमुसंहनन वाले काम कला के विषय की चर्चा को करते हुए भी इस विषय में अरुचि देन्दु गोता, और उसी अक्षर से दश तक की निकलने वाले ऋग्वेद इत्यादि भने कासे को या काम दिकार कुछ कर सकता है ? अर्थात् नहीं। इस चर्चा — हजारों ग्रन्थ हुए है । परन्तु कोई उन्हें अभी तक देख मी नहीं पास है।