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सिरि भूवलय
, सार्थ सिद्धि संघ मैंगसौर-दिल्ली
सातार
इस तरह भगवान महावीर के समवशरण राजा थेरिएक था ।३।।
धर्मदाय मल्लिनाथ ये तीर्थकर अंक है 18 ... ... ...... प्राप्त किया श्रेष्ठ मुनि का यह देह यानी इस मुनि का शरीर तप या संयम इसी अंक के मुनि सुव्रतनाथ हैं ।१६। के द्वारा तपते हुए धूलि से लिप्त हुये इस शरीर की पूलि को अपने शरीर से सात तीर्थकर अंग देश में अधिकतर बिहार करनेवाले हैं।९५! स्पर्श करने से रोम से जरित हया शरीर एक निरोग बनकर कामदेव के वीरनाथ और नेमिनाथ विदेह देश में 1851 समान तथा तरुण युवक के समान बन जाता है ।०४।
शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाच का कुरुजाङ्गल देश बलय विहार क्षेत्र अत्यन्त पुराने तथा असाध्य रोग के नाश करने के लिए अत्यन्त उत्तम -१००। मीठी राम वर्ण औषधि से युक्त ऋद्धि धारी मुनि के मुंह की लार तथा मूठन
समस्त तीर्थकरों का विहार क्षेत्र आर्यावर्त या भार्यवलय रहा है। .. को सेवन करने से तया यूक सेवन करने से संसारी सम्पूर्ण मानव प्राणी के सर्व-१
१०१-१०२॥ च्याधियां नाश होती हैं । उस मुनि को क्षल्ल अौषधि ऋद्धि कहते हैं।
इस प्रकार तीर्थंकरों के बिहार का यह (आर्यावर्त) भूवलय है ।१०३। जिस मुनि के शरीर के पसीना को हमारे दारीर को स्पर्श करने मात्र
एस व कसा तुघा महेश गुपक श्लोक (पय) है १०४.: से पुरानी व्याधियां का उपशम होकर नबीन कातिमाय सुन्दर काया बन जातो
यह भरत क्षत्र का वैभव है ।१०। . .... .... है तथा गर्व के साथ अपने को यह बतलाता है में काम देव हूँ अहंकार को
यह कुरु देश का प्रतिदाय रूप कुरु है ।१०६॥ उत्पन्न करने योग्य शरीर प्राप्त कर देने वाली यह सल्लोपघि ऋद्धि धारी
ये देश सरस है तथा पारस, पारा आदि को खानिवाले हैं।१०।। मुनि-के असीन का ही महत्व है ।८५८६।
ये देश महान पुरुषों के उत्पादक हैं तथा महान वैराग्य उत्पन्न कराकर ग्रादि से लेकर अन्त तक रोग को नाश करनेवाले, श्री जिन मुनि के
मुक्ति को प्राप्त करानेवाले हैं।१०८। ऋद्धि के शरीर की एक मल करग के अणु को लेकर अपने शरीर को लगाने
यह भूवलय मनुष्य के सौभाग्य को प्राप्त करानेवाला है |१६ मात्र से जो आदि अन्त का रोग नष्ट होता है ऐसे ऋद्धि को विद्वज्जन जल्लोषधि कहते हैं ।
जिन ऋषियों की जिह्वा (जीभ) पर आया हुआ कडवा, नीरस पदार्थ
भी मधुर (मीठा) रसमय परिणात हो जाता है, वह मघुस्रावी ऋद्धि है। उनके जिन यति के कान, अांख, नाक, दन्त के मल छूने मात्र से पारीर के !
शरीर का मल भी मधुर हो जाता है । ११०। .. ममस्त रोग नष्ट हो जाते हैं, वह मलोषधि ऋद्धि है।
जिन ऋषियों का थूक, विष्ठा तथा मूत्र पृथ्वी पर पड़ा हमा सुख . वे साधु पुष्पदन्त भगवान को प्राप्त हुए हैं । - वे पार्श्वद्वय (सुपाश्वनाथ, पाश्र्वनाथ) को प्राप्त हुए हैं ।१०।
जाता है उस सूखे हुए मल मूत्र की बायु के छुने मात्र से अन्य जीवों के रोग ' वे मुरण की अपेक्षा गणनातीत-अनन्तनाथ को प्राप्त हुए है ।११।।
दूर हो जाते हैं, यह विडोषधि ऋद्धि है।१११॥ वे समस्त जीवों को संसार ताप से शीतल करनेवाले शातलनाय भगवान।
जिन ऋषियों के शरीर को छूकर बहने वाली वायु के स्पर्श मात्र से को प्राप्त हुए हैं १६२।
समस्त मानव पशु पक्षियों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं, तया कालकूट विष समस्त विश्व से पूज्य वासुपूज्य भगवान हैं ।६३।
का प्रभाव भी नष्ट हो जाता है वह जलौषधि है।११२
. . .. वे विमलनाथ अनन्तनाथ को प्राप्त हुए हैं।४।
जिन ऋषियों के मुख से निकली हुई लार के द्वारा रोगियों का विष दर