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________________ २०८ सिरि भूषनय सर्व सिसिस'च वेगलौर दिल्ली धवल और प्रतिशप धवल, इन पांच खण्डों के रूप में विभाग किया गया है। लांगूलचालन मघश्चरणावघात, भूमोनिपत्य वदनोदरदर्शनं च। यह भारतो भारत माता की शुचि और निर्मल कोति रूप है । इन पांच खण्डों से या पिण्डदस्य कहते गजपुंगवस्त, घोरविलोकयति चाटुशनश्च भुक्त। पाने वाला ज्ञान रूपी किरण विश्व के समस्त पदार्थों को अर्थात् षट् द्रव्य को। विवेल्लतिवन्नवराशिकालदि । मनविट्ट मेल्थ यत्तिनन्ते ।। नि:क रूप से असे भूब का किरणों में अर्थात् प्रकाश में रक्खे हुए पदार्थ स्पष्ट । रूप से देखने में प्राते हैं, उसी तरह समस्त भुबलय से पदार्थ स्पष्ट रूप से देखते . विमवेल्लाळसिद श्रुतदंकाक्षरगळ । मनसिटु रात्रियोगानेसुवर ॥६॥ में आते हैं। इसलिये इन पांच धवल रूप भूवलयग्रन्थ को मैं नमस्कार करता है। शक्तियोळोंदे दारियोळ वेगदि । व्यक्तवागोडव मृगव ।। मंतरधिकार:-नीचे दिये जाने वाले 'साधुगलिहरेरडु वदे द्वोपदि साधि व्यक्तित्वकेपदन्ते सरलवाद । व्यक्तिवागळिथर साधुपम ॥ सुतिहरु मोक्ष वनु" इत्यादि रूप श्लोक के अध्याय में 'साधयन्ति शानादिशक्ति-करपोय वरवो ए'वैन्तुब हसुवदु । गरियनेमेयुवतेरदि ।। भिर्मोक्षमिति' इत्यादि रूप श्लोक और अन्तिम अक्षर से प्रोमित्येक्षरं ब्रह्म परमान्नव गोरि त्तियि डिल्य नीरिहयवृसिगळम् ।।१०Fइत्यादि रूप भगवद् गीता के श्लोक निकलते हैं। इस अध्याय को यहां क्रम मे तिरियोळ तडेयिल्लदे हरिदाव । बरगायिन्ते निस्सग। दिया गया है। घेरसुतचेरिसुवेकांगविहारिगळ् । गुरुगळंदने यसाधुगळप्रब् ॥११॥ साघुगळिहरेरडूवरेद्वीपदि । माधिसुतिहरुममोक्षवतु ॥ विभिक्षुगळिवरुसकल तत्वगळनु । साक्षात्तागि बेळगु ।। प्रावियनादिय कालदिविहसर्व । साधुगळिगे नमनमो ॥१॥ ___अक्षर ज्ञानिगळादित्यु नंदादि । रक्षिप ततो मूर्तियवर् ।१२। . . परिसलनंत ज्ञानादि स्वरूपव। परिशुद्धात्मरूपवनु । रमेय सुत्तिह सागरदन्ते गंभीर । समरदोळ् कर्मवगेल्यर् ।। . वरसर्व साधुगळ् साधिसुतिरुवर । परमन तम्मात्मनोमि ।।२।। । सरतेयोळ मंदराचलबन्ते उपसर्ग । बररलकंपरगिहरुम् ।१३। यमिगळिवबन्दु महाव्रतगळयदनुहोंदि । क्रमबोळि सर्वसाधु गल्ता। ३ मोहननाद चंद्रमनन्ते शान्तिय । कहनु सर्व चन्द्रमरु ।। समनागिउपवासदिपेळ्द । गमकदोलिहरुसाधु गळ्द ॥३॥ साहसवतगळ मरिणयनु धरसुत । रुहिन मरिणगळंतिहह, ।१४।.... नवगळे रडर साविर जातिशीलब । नवर भेदगळेल्लयरितु ।। क्षरवेनेनाशवदळिरक्षरखेंब । परिशुद्ध केवल ज्ञान ॥ सुविशुद्धवाभत्नाल्कुलक्षमळेम्ब प्रबनुउत्तर गुणगळन् यो ॥४॥ दिरुवनुसहनेयोळिरुव भूमियतेर । अरिवसमतेयोलोरेवर्थ ॥१५॥ तिकिटु पालिसुव रेंटनेपरमेष्ठिग । कियोळ गिदुसमाधि । मिदुमाडिमन्निनि गेहलुमनेक? । अदरोळ्यासिपहाविनन्ते ॥ योळगात्म सिरिया बसाहारवकोंब । बलशालिगळ साधुगळका ॥५।।। सदनबनितरू कहिरलल्लिये । मुदविल्लदे वासिपरुव ॥१६॥ ज्ञान साधनेयोळात्मध्यानविदह । ज्ञानवन्तर सिंहदन्ते ॥ तिरियोळगिद्दरु तिरुहमुह दळिह । सुरचिरदाकाशदन्ते ।। शाने पराक्रम बुळ्ळ संयमिगळु । ज्ञानावि शक्तियोळ रतरक् ॥६॥ । पोरेवपरारिल्लब । निरालंबह सरवहनिलेप करया ॥१७॥ नानाविधवाद पाहार विट्टरु । तानुगंभीरवोळिद्द ॥ सर्वकालबोळु मोक्षदन्वेषण । दूवियोळिरुव साधुगळु ॥ शाने गौरविसल अन्नवर्तिवानयत् । तानन्दवाभिमानिगळव ॥७॥ निर्वाणपववसाधिसुत बाळुवर्व । सर्वसाधु गळ्गेमिह ॥१८॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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