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सिरि पलय .....
सार्थसिटि संघ, पंगलोर-विली इस संसार का अन्त करने के लिए अन्तिम मनुष्य जन्म को देने वाला ! लिये एक बड़े पहाड़ को शिला पर एक भगवान के आकार को रेखाएं खींची। जमवलय है ।।
बे रेखायें बाहुबली की मूर्ति के समान दिखने लगीं। तब रामचन्द्र जी ने उसी .... दूसरा जन्म ही अंतिम शरीर है ।।
1 मूर्ति की ग्राकार रेखा को मूर्ति मान कर दर्शन कर भोजन किया । उस पत्थर जैसे नौकर को अपने स्वामी द्वारा महीने में वेतन मिलता है उसी पर रेखा से मूर्ति बनने के कारण उसका नाम 'कल्लु बप्पु रक्खा था ।२० प्रकार यह भूवलय ग्रन्य समय समय पर मनुष्य को पुण्य बंध प्राप्त कराने इस अध्यात्म-राज्य के नाम को कुमुदेन्दु प्राचार्य की उपस्थिति में वाला है ।
प्रर्थात् उन्हीं के समय में लोग भूल गये थे।२१॥ ... गर्भाधान तथा जन्म से मरण तक सोलह संस्कार होते हैं, उसमें मौंजी-1 . जिस समय प्रतिवर्ष यात्रा को जाते थे, उस समय सम्पूर्ण राज्य में बंधन अर्थात् व्रत संस्कार विधि इत्यादि उत्तम संस्कार हैं। इन विधियों का सम्पूर्ण जनता को रास्ते में शर्बत, पानी को पिलाने के लिए मार्ग में प्याक का उपदेश करने वाले गुरुयों के द्वारा चलाया हुआ यह भुवलय है ।११॥
प्रबन्ध कर दिया था ।२।। . इन अठारह श्रेरिंगयों को साधन किये हुए गंग वंश के राजाओं के काव्य बाण का अग्न भाग बहुत तीक्ष्ण होता है। उसी प्रकार लक्ष्मण के . हैं । इस गंग वंश के साथी राजा लोग प्रतिदिन भूवलय का अध्ययन करते थे। बाण की तीक्ष्ण अग्र नोक से अब अत्यन्त सुन्दर रूपसे दर्शन होने वाले भव्य यह काव्य उनके लिये मंत्र के समान था ।५३॥
तथा अत्यन्त सुन्दर और मनोज्ञ बाहुबली की मूर्ति बन गई ।२४१... .. भूवलय का चक्र बंध ढाई द्वीप के समान है।१४।
ऐसा महत्वशाली कार्य राज महल तथा गुरु का मठ ये दोनों एक रूप यहां पराक्रमशाली 'गोट्टिग' दूसरा नाम शिवमार चक्रवर्ती थे। यह होकर कार्य करें तो महत्वशाली कार्य होता है, अन्यथा नहीं। कुमुदेन्दु प्राचार्य शिवमार सम्यक्त्व शिरोमरिण 'जक्की लक्की ग्रो' के साथ इस भूवलय को।के अन्यत्र भी कहा है किप्राचार्य कुमुदेन्दु से हमेशा सुना करते थे।
.. . तिरेय जोवरनेल्ल पालिप जिन धर्म नरर पालिसुव बेनरिख। कर्णाटक भाषा में राज महल को 'प्ररयने असे कहते हैं। प्ररयने गुरु धर्म दाचार वनुमरिदिह राज्य नरर पालिसु बदरिदे ॥ अथवा प्रयाघर ऐसा अर्थ होता है, जब इस राज महल में गुरु का मठ बन जाता।
1. अर्थ:-समस्त पृथ्वी मंडल के सब जीवों की रक्षा करने वाला प्रेम है, तब पूर्ण गृह बन जाता है।१६
धर्म मनुष्यों की रक्षा करे उसमें क्या आश्चर्य है ? इसी तरह गुरु की जो पाशा .... इस शब्दार्थ को अज्ञानी लोग नहीं जानते ।१७
को पात से ना न
को पालन करने वाले राजा अपने राज्य का पालन - करने में समर्थ हो तो ? - भूवलय में जो ज्ञान है, वह बहुत मधुर तथा मनोहर है। मधुर अर्थात् । श्या आश्चर्य है ? मोठे रस के लिये अनेक चीटियां उसके चारों ओर चाटने के लिये जुट जाती इस बात को अपने ध्यान में रखते हुए राजमहल और गुरु का पाश्रम हैं। परन्तु इस ज्ञान रूपी मीठे को कोई भी खाने के लिए [समाप्त करने के एक हाँ था ऐसा कहा । लिए] नहीं जुटता ।
ईहाः अर्थात् ऊपर कहे हुए जो विषय है उनको ऋषि सिद्धि के लिए भूवलय के मध्य यन करने वाले को वृद्धावस्था पाने पर मी तरुए। भगवान ऋषभदेव द्वारा कहा हुअा मुख्य सिंहासन अथवा वाहन बैल व हाथी यह अवस्था ही दिखाई देती है। गंग वंश के राजा के साथ प्राचार्य कुमुदेन्दु का संघ नवकार शब्द के स्यात चिन्हित है अर्थात् ।२६। कलवप्पु तीर्थ अर्थात् अवरण वेलगुल क्षेत्र में दर्शन के लिए गया था। पुरातन लांछन के समान रहनेवाली पवित्र शुद्धता को इस वर्तमान का कहा समय में लक्ष्मण ने गदा दंड के द्वारा अपनेभाई श्री रामचन्द्र जी के दर्शन के । हुआ अर्थात् इस लांछन का कहा हुआ इस भगवान की महिमा को कहां तक