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________________ सिरि मूवलय सर्वार्थ सिद्धि संप बेगचौरविल्लो किया जाय तो भी एक है। यह कर्माटक कितने आश्चर्य का है? क्या यह । भेद की अपेक्षा से अक्षर पौंसठ हैं ।२१।। सामान्य है? अर्थात सामान्य नहीं है ।२०१॥ अमेद विवक्षा से एक अंक है ।२२०॥ कर्म सामान्य रूप से एक है, मूल प्रकृतियों के अनुसार ६ प्रकार का । श्री भगवान वीर को वाणो नौ अंक रूप है ।२२२ है। उत्तर भेदों के अनुसार कर्म संख्यात भेद वाला है। उन कर्मों को दबा यह विश्व काश्य नामक भूवलय है ।२२२॥ देनेवाले पारम-प्रयल भी उतने हैं । इन सबके बतलानेवाले विश्व के अंक निकल नवपद भक्ति ही प्रणुव्रत की प्रादि है और जीव जिन-दीक्षा धारण पाते हैं ।२०२। करके नवांक को आठ से, सात से, दोसे, समभाग करने से शून्य रूप में दीखता वह विश्व का व्यापी होता है ।२०३। है ।२२३॥ यही जीव का अनन्त गरिणत है ।२०४। मोह के अक कितने हैं, राग के कितने हैं, ऐसा जानकर वह मोह यह जन्म और मरण का अनन्त है ।२०५। देष को जब नष्ट कर डालता है तब निरञ्जन प्रमूर्तिक पात्मा का ज्ञानांक भगवान पईत देव के ज्ञान में आया हुआ यह अनन्त है ।२०६॥ कितना है, यह मालूम होता है ।२२४। श्रो वीर भगवान का जाना हुआ यह अंक है ।२०७॥ तेरहवें गुणस्थान में पहुंचा हुए आत्मा के सारे दर्शनांक. बारहवें जीवों को संसार में हलन-चलन करानेवाले कर्म हैं ।२०८-२०६। गुण स्थान का अंक प्रोर सार भूत चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त हुआ चौदहवां यही जीव राशि का कौट है ।२१०॥ महिना रुपात है ।२२५ बिना रक्षा के यह अंक है ।२११५ पुनः शिव पद को प्राप्त करके सिद्ध लोक में पहुंचा हा सिद्धलोक के जीव को संसार में भ्रमण करानेवाला यह अंक है ।२१२। निवासी जीव और उनके पाठ गुण की व्याप्ति से पाये हुए अंक कितने हैं, यह जीव राशि के गणित का अंक है ।२१३॥ इस सम्पूर्ण विषय को बतलाने वाला यह अतिशय नामक धवल भूवलय पवित्र जीव को पात करनेवाला यह अंक है ।२१४॥ है। २२६ भाव काक रूप यह गणित है ।२१५॥ कामदेव का हन्ता आगे १४, ३१६ अन्तर के ८,०१६ सम्पूर्ण मिलने जीव को संसार में रुलाने वाला यह गणित है ।२१६। से एक को बतलानेवाला यह भूवलय नामक ग्रन्थ है ।२२७। यह सम्पूर्ण जीवों का गणित है ।२१७। ऋ, ८, ०१९+अंतर १,४३१६-२२,३३८, पवित्र जीव का ज्ञानांक है ।२१८१ अथवा अ-२,००,५६५+ऋ२२,३३८२,२२६०३।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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