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________________ १७१ सिरिमुषलय सर्वोष सिरि संघ गतीलाली भगवान की वाणी के द्वारा पाया हुआ सर्व शब्दागम अंक से निकल-1 एक अंक हो भूवलय है ११३६। कर पाये हुए अक्षर खंडित न होने वाले काल क्षेत्र के पिंडात्म हमेशा रहते । यह एक अंक पाप का नाशक, पुण्य का प्रकाशक, समस्त मल से रहित हैं, अर्थात् ये शब्द नित्य तया हमेशा जोवन्त है ।११४। परम विशुद्ध तथा समस्त सांसारिक तापों को नाश करके अन्त में मोक्ष को ॐकार के द्वारा पाये हुए सभी शब्दागम के अक्षर अंक सर्वत्र बतलानेवाला ओंकार रूप श्री पद नौवां अंक है ।१४०1 . सम्पूर्ण शंकानों का परिहार करनेवाले शंका दोष रहित पक हैं ११॥ उसमें मोंकार मिलने से प्रादि के १० अंक को प्रशमादि गुण म्यान यह ओम्का अ शब्द भद्र स्वरूप है ।११६॥ अतिशय अंक उसमें से धीरे-धीरे ज्ञानाक्षर की उत्पत्ति होती है ।१४।। ओ३म् भो एक अक्षर है ।११७।। आशा अंक-अ इ उ ऋ ल ए ए ऐ ओ औ इन राशियों के स्वरों सभी अक्षरों में एक ही रूप में रहनेवाले अक्षर हैं।११। में उस आशा से ह्रस्व दीर्घ तथा प्लुत इन तीनों राशियों से गुणा करने पर ओ३म् एक अक्षर ही है स्वर नौ पद हैं।११६ गुणनफल २७ होता है ।१४२। यह ओमकार भद तथा मंगलमय है ।१२०1 पर्वत के अग्रभाग के समान मा, आ, ई, परी, क, भू, ऋ का यह ओ३म् एक अक्षर ही भंग अंक है ।१२१॥ ए-ए-ऐ-ऐ, प्रो-यो, यो-प्रो इन उपयुक्त स्वरों को क्रमशः दीर्घ इसमें से एक को छुड़ानेवाला अंक है ।१२। १ २१ २, १ २ १ २ और प्लुत कहते हैं ।१४३। एक अंक का अवयव हो वह है ।१२३॥ इस वृद्धिगत ह स्वरों को ३ से गुणा करने पर पानेवाला गुणनफल यह ओंकार शब्द सर्व मंगलमय है ।१२४॥ २७ और क ख ग घ ङ् ये पांच तथा च छ ज म ज ये पांच, इन्ड ङ प्रोम् अंक हो शुद्धाक्षर है ।१२॥ रए इन पांचों को सिद्ध कर त य च न प फ ब म इन पांचों वर्गों को प्रोम् को तोड़ने से सभी आ जाते है ।१२६॥ परस्पर में गुणा करने से गुणनफल २५ आता है। पुन: बद्ध य, रल, व, ओम अंक ही योगवाह है । १२७/ स, ष, श, ह तथा सिद्ध किये हुए अं, मः , कः, फ: ये चार अंक १४ ओंकार ही दिव्यनाद है ।१२८) से १५० तक। प्रोम् अंक ही परमात्म वाणी है ।१२६॥ शुद्ध व्यंजन ३३ हैं ॥१५॥ योगो जन एक ओं को हो भजते हैं ।१३० ये चार अंक प्रयोगवाह हैं। इनको उपयुक्त व्यंजनों में मिलाने से एक अंक ही ६४ रूप होकर ॥१३॥ ३७ अंक होता है १५२-१५३॥ अन्त में अपने आप ही ओंकार रूप हो जाता है ।१३२॥ बझाक्षर ६४ हैं ।१५४ एक मंक ही सिद्ध स्वरूप है ।१३३॥ शुद्धाक्षरांक को १५५। एक में ही सब कुछ है, ऐसा समझो ।१३४१ सोघे मिलाकर ६+४=१० होते हैं ।१५६। एक मंक हो २० अंक है । १३५॥ इस संयुक्त १० में से बिन्दी निकाल देने पर १ रह जाता है ।१५७। यह ओंकार दूसरा अंक है ।१३६॥ यही १० शुद्धांक है।१५। एक का भंग करने से ।१३७१ शुद्धांक १ ही अक्षर है ।१५। १२ पंक होता है ।१३१ वृद्धि में प्रावि भंग है ।१६०
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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