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________________ सिरि भूवलय सविं सिद्धि संघ बैंगलोर-दिल्ली प्रोमदंक स्वर नव पदवु ॥११६५ ओम्कार भदर मंगलव ॥१२०॥ प्रोमदंक भन्ग अक्षरषु ॥१२१॥ अोम्दनु बिडिसुव अन्क ॥१२२॥ प्रोमदनक बदुवे वर्णगळु ॥१२३॥ ओम्कार सर्व मंगलवु ॥१२४॥ योमदनक वदु शुद्धाक्षरतु ॥१२५॥ प्रोमदनु बिडिसलु सर्व ॥१२६॥ प्रोमदनक वयोग वाह ॥१२७॥ प्रोमकार दिव्यनिनाद ॥१२॥ प्रोमदनक परमात्म वाणि।।१२६।। ओम्दनु भजिपनु योगि ॥१३०॥ प्रोमदनक अनाल्कमागि।।१३१॥ प्रोमकार ताने तानागि ॥१३२॥ प्रोमदनक सिद्ध स्वरूप ॥१३३॥ प्रोम्दतु सर्ववेन्दरिया ॥१३४॥ प्रोमदनकव इप्पत्तु बिडिय।।१३५॥ प्रोम्कारदन एरड्अन्ग ॥१३६।। प्रोमदन्क भन्गव माडे ॥१३७॥ अोमददु तोम्बत् एरडन्क ॥१३८॥ प्रोम्दन्क भन्ग भूवलय ।।१३६॥ पा* पविनाशक पुण्य प्रकाशक । लोपविल्लद शुद्धरूप ॥ ताप म्* लिसि मोक्षव तोर्प प्रोमकार । श्री पद ओम बत्तरन्क ॥१४०॥ * शवागलके प्रोम कारव कूडलु । यशदादि हत्प्रनकवदनु । प्र* शमादि गुणठाणदतिशयदन्कनु । प्रोसरुत ज्ञानाक्षरांकम् ॥१४१५ प्रा* शेय अक अइउङ्गळ्ए ऐ ओ औ। राशियोम बत्त स्वर धा* || प्राशेयिम ह रस्व दीरघ प्लुत मूरिम । राशिय गुरगव् इप्पत्ए।१४२। गि रियरदन्दद प्रामाईग्ररी। सर ऊऊऋ ऋलू लू ।। वर एएऐऐ नं प्रो ो ो ौ । सवरगळे दीर्घ पलुतगळु ॥१४३॥ रि* द्धिय प्रोम्बत् उ स्वरगलु मूररिम् । शुद्धियिम गुउण्इ स लु बरव॥ मुदिन्इप्पत् एलुक खगघज ऐदु। शुद्ध चुछ ऐदु॥१४४॥ होदिसि ट् इदए गळ ॥१४५॥ सिद्धसि त् य द ध न वनु ।।१४६॥ शुद्धद प फ ब भ म ऐदु ॥१४७॥ रिद्धियोळ् गुणिस् इत्पतऐदु।।१४८॥ बद्धयर् ल व श ष सह व ॥१४६॥ सिद्धअंग काफः नाल्क्ग्र म॥१५०।। शुद्धध्यन्जन मूयत्नरम् ॥१५१॥ इद्द नाल्न योगवाहगळ ।१५२॥ होद्दलु मूवत्एळ अंक ॥१५३॥ बद्धवाद अरवत्नाल्कु ॥१५४॥ शुद्धदक्षरदंक गळनु ॥१५॥ उद्दव कूडलु हवतु ॥१५६॥ होदिसला हत्ते प्रोम्दु ॥१५७॥ शुद्ध १ दे श्रोम्दु अंक ॥१५८॥ शुद्धकि प्रोम्दे अक्षरवु ॥१५॥ रिद्धियोळ् प्रादिम भंग ॥१६०॥ बुद्धिगे सिलुकिहुद् अंग ॥१६१॥ सिद्धान्त सागरदंग ॥१६२॥ सिद्धर तोक्य भन्ग ॥१६३॥ शुद्धांक गुणकारद् अंग ।।१६४॥ रिद्धिय तोरव भनग ॥१६॥ सिद्ध सम्सिद्धद भन्ग ॥१६६॥ बुद्धि प्रकर्षाणु भंग ॥१६७॥ रिद्धि प्रकाश्दणु भंग ।।१६।। सिदधत्व दर्वादि भंग ॥१६॥ सदलिदरे सिद्धरनग ।।१७०॥ शुद्ध साहित्य भूवलय ॥१७॥ व* शवाद कर्नाटक देन्टु भागद । रस भंगद् दक्षरद स र वा। रस भावपळनेल्लव । कूडलु बन्दु । वशव एनरह दिनेन्दुभाषे॥१७२॥ र* मगोयवादादिम भन्ग समयोग । दमलांक अान्दु अक्षर व ।क्रमदोळगोम्दरिम गुरिणस् अरयत्नाल्कु। विमलांक हुदवुअरिया।।१७३।। सि रिसिद्धम ई प्रोम्दम बरेदुकोनडदरोतु । अरहन्त शुद् घन रोड'वनु। सिरिअशरोररसिद्धर''प्रादिः सिरिपाइरियदोल'मा दि१७४ हक रडिद ई मुरु प्राप्रापा' अक्खवाबरेदुकूडलु 'मा'बहुदु।। वरध मा* चरणगादिय 'आ' बरे मुन्दे। बरेवुदु उवजयदादि ॥१७॥ रे* खेयो अन्तदे साधुगढ़ मउनिगळ । श्रीकरदादिम म' शरम रणांक ॥ साकल्यव कूडे ओमकारबप्पुदु । सौख्य सर्वद मात्र बहुदु ॥१७६।। या कलनकद जीव शब्द ॥१७७॥ साकल्य भंगद मूल ॥१७॥ साकल्यव कूडे अोमदु ॥१७६।।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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