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ताशम
1111 1111 . न वदंक बरवन्दवेन्येन्दु केळुव । युवति सवन्दरिगे स मस्त।। सवियंक प्रोमदेरळमूर्नाल्कयदारेलु। नवसृष्टिएन्ट प्रोम्बत्तुगळ्।५८ दा न माडिद देव तन एडग यिन । अनन्ददम्तान्गुलिय * तारणबनाकेय एडगय्य अम्रुतद । तरणदनगुलिय मुलदल ॥५६॥ ग मोकार मन्त्रद क्षरगळनाकेयु। गमनिसि च्चोस्तिर व* विमलांक रेखेय आदिमदन्त्यद । सम विषम स्थानगळनु ॥६॥
अमलद् अन्तरद रूपयतु ॥६॥ क्रम बंदगोळिप योगवनु ॥६२॥ सम विषमादि सर्ववतु ॥६॥ अमलद् अन्तरद रेखेयनु ॥६४॥ करम बद्धगोळिप भाववनु ॥६५॥ सम विषमांक भागवतु ॥६६॥ विमलद् अन्तरद सत्ववनु॥६७॥ क्रम बद्धगोळिप भागवतु ॥६॥ सम विषमांक लेक्कवनु ॥६॥ कमलद् अन्तरद सत्यवतु ॥७॥ क्रम बद्धगोळिप द्रव्यवनु।।७१॥ सम विषमांक गरिएतव ॥७२॥ गमकद् अन्तरद सत्ववनु ॥७३॥ क्रम बद्धगोळिप गमकवम् ॥७४॥ सम विषाक कूटवतु ॥७॥ यमकद् अन्तरद सत्ववतु॥७६॥ क्रम बद्धगोळिप शून्यवनम्॥७७॥ रस विषमांक लदबनु ॥७॥
श्रम हरद् अतिशयोकवतु॥७॥ करम बद्धगोळिप विद्येचनुम् ॥८॥ सम शून्य काव्य भूवलय ॥५॥ पर ददक्षरांकद भागव तस्वनक । विधवनु तिळियम्म स क ल।। विधद दव्यागम शरुतविद्ययनकद । पदवे मंगलद पाहुउनु ॥२॥ न* वपद बद्धवक्षर विद्ये बेकम्ब । निवगोग अतिशय क ल या ।। णव पेळ्व प्रागम कर्म सिद्धांतद। अवयव विदरोळ पेळवेबु।।८३॥ च* रितेयोळ बरेदिह सरस्वतियम्मन । परियनरितु साकल् या अरहन्त बिद्यद केवलज्ञानद । परियतिश यव केळम्म ॥४॥
करुणेयक्षरव केळम्म ॥६५॥ रिय गेल्लुतूद केळम्म ॥८६॥ परमन अतिशय वम्म ॥७॥ धरेय मंगल काव्यवम्म ॥५६॥ करुणेय क्षरदनकवम्म ॥८६॥ अरिय गेल्लुयुदे सिद्धांत ॥६॥ परमन अतिशय घवल ॥१॥ घरेय मंगलद पाहुडबु ।।१२॥ करुणेय साम्राराज्यवम्म॥॥ अरिय गेल्लुवुदे मंगलबु ॥१४॥ परमन भूवलयांक ॥६५ धरेय जीवर काव्यान्ग ॥६६॥ गुरुगळ साम्राज्य वम्म ॥१७॥ अरि गेल्दवरंक बम्म ९८R परमन गम्भीरदनक ॥६॥ घरेयं जीवर सौभाग्य ॥१०॥ अरहनत साम्राज्यवम्म ॥१०१॥ अरिय गेल्दवर कक्षरांक ॥१०२॥ परमन गम्भीर वचन ।।१०३॥ धरेय जोवर चारित्र ॥१०४॥ सरस्वती साम्राज्यवम्म।।१०।। अरिफ गेल्दवर सिद्धांत ॥१०॥ परमन गम्भीर दान ॥१०७॥ परमात्म सिद्ध भूबलय ॥१०॥
नरसुरबन्दय भूबलय ॥१०६॥ परमाप्त सिद्ध भूललय॥११०॥ गुरुगळन्गय्य भूबलय ॥१११॥ कोटि कोटाकोटि सागरवळतेया गूट शलाके सूचिगळ।। मेटियपद एॐ वकार मन्त्रदे बह । पाटियक्षरत लेक्कगळम् ॥११२॥
* कामरुदनगादि सर्व शब्दागम । दक्कदक्षरद अन् का दिन तक्करे रबागमवर गदागमकाव्या सिक्कदुकनवर्यदागमदि॥११३ डि नडीरदोळ बंद सर्व शब्दागम । अन्डदक्षरद् वश ॐ बत्रु ।। खन्डित वागु बुरि काल क्षेत्रद । पिण्डवु नित्य बाळुवुदु।।११४।। प्रो मकारदिम् बंद सर्व शब्दागम । दन्कदक्षरद् अन् क* नित्य।। शम्केगलेळळव परिहर माहुब। सम्कर दोष विरहित ॥११॥
ओम्कार भद्र स्वरूप ॥११६॥ प्रोमदनक प्रोम्दे अक्षरवु ॥११७॥ श्रोमदनु बिडिसुव परषु ॥११॥