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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ देंगसोर-दिल्ली उपयुक्त ७२० संख्या में से यदि आदि और अन्त को २ संख्या निकाल : यह भूवलय ग्रन्थ अंक भंग से बनाया गया है ।२०५॥ दी जाय तो सर्व भाषा निकलकर आ जाती है। उसमें ७०० क्षुद्र भाषा तथा पारा सिद्धि के लिए यह आदिभंग है ।२०६१ १८ महाभाषा है 1१६१
यह यशस्वती देवी की पुत्री का हस्त स्वरूप है ।२०७१ प्रतिलोम क्रम से पाये अंक में अनुलोम क्रम से पाये हये अंक का। उस यशस्वती देवी की हथेली कोरेखा से रेखागम शास्त्र की रचना हुई भाग देने से मृदु तथा मधुर रूपी देव-मानवों की भाषा उत्पन्न हो जाती है। और वह शास्त्र भो इसी भूवलय में है।२०८। इसका नाम महाभाषा है। जब महाभाषा उत्पन्न हो जाती है तब संसार की सात तत्व के भागा हार से आये हुये आदि ब्रह्म वृषभ देव भगवान् समस्त भाषायें स्वयमेव बन जातो हैं ।१९२॥
के द्वारा प्राप्त यह भूवलय नाम की वाणी है। समस्त अंकाक्षर को अपने ये सभी भाषायें सर्वज्ञ वाणी में निकली हुई हैं। सर्वज्ञ वाणी अनादि । अन्दर समावेश कर लेने के कारण इसमें विजय घबल के अन्तर्गत अंक राशि कालीन होने से गी|ग्वाणी कहलाती है। यही साक्षात् सरस्वती का स्वरूप है ढेर देर रूप में छिपी हुई है। इसलिये इस भूवलय को अतिशय धवल कहा गया तथा सभी एक रूप होने से ओंकार रूप है। अपने प्रात्मा को ज्ञान ज्योति प्रकट है।२०६। होने के कारण जिनवाणी द्वारा पढ़ाया गया यही पाठ है ।१९३॥
इसमें ७१८ भाषायें माला के रूप में देखने में पाती हैं। वे सभी अतिगिरि, गुफा तथा कन्दरामों में ब्राह्याभ्यन्तर कायोत्सर्ग खड़े होते हये। शय विद्या के श्रेणी से मिली हुई हैं। ३६३ मतों का अंक के रूप से वर्णन किया योग में मग्न योगियों को यह अर्हन्त वाणी सुनाई पड़ती है। और ऐसा हो गया है ।२१०॥ जाने पर योगी जन अपने दिव्य ज्ञान द्वारा सभी भाषाओं को गणित से निकाला इस भूवलय में प्राने वाले धवल और महाधवल को यदि इसमें से निकाल लेते हैं। इसलिये इस भूवलय को गरु परापरागत काय्य कहते हैं
दिया जाय तो इसमें दो ही भापा देखने में बायेंगी। तो भी उसमें ७१८ भाषायें श्री वर्धमान जिनेन्द्र देव के मुख कमल अर्यात सर्वांग से प्रकटित मंगल- सम्मिलित हैं। मंगल पाहुड ऐसे इस भूवलय में जीव के समस्त गुण धर्म का प्राभूत रूप तथा असहश वैभव भाषा सहित है।१६५।
विवेचन किया गया है। इसलिये यहां इसमें से जय धवल प्रन्थ को भी निकाल इस काव्य को पढ़ने से दिव्य वाणी के प्रक्षराकु का ज्ञान हो जाता
सकते हैं 1२११॥
द्वादशांग बारणी में अनेक पाहृड ग्रन्थ है। और अनेक प्रागम प्रत्य हैं। यह भाषा ऋद्धि वंश की आदि भाषा है । १६७
उन सब को विजय घवल भूबलय ग्रन्थ से निकाल सकते हैं। और उसी विजय यह भाष, द्रव्यागम की भाषा है ।१६८।
धवल ग्रन्थ के विभाग में अत्यन्त मनोहर देवागम स्तोत्र निकल आता यह भाषा विष वाक्य अर्थात् दुर्वाक्य का संहार करने वाली है ।१६६। है ।२१२॥ इस भापा को वशीभूत करने से यात्म संमिद्धि प्राप्त हो जाती है ।२००। इमलिये यह भूवलय काव्य महाविद्ध काव्य है 1२१३। इस भाषा को सीखने से विषयों की प्राशा विनष्ट हो जाती है ।२०१॥ भगवान का वचन ही सिद्धान्त रूप होकर यहां आया है ।२१४॥ ६४ अक्षरों के भंग में ही ये समस्त भाषायं आ जाती हैं (२०२॥
श्री वीर जिनेन्द्र भगवान का वच्च ही साम्राज्य रूप है ।२१५१ . यह भाषा ब्राह्मी और सौन्दरी देवी की हथेली में लिखित लिपि रूप में। यह वनवामी देश में तप करने वाले दिगम्बर मुनियों का भूवलय है ।२०३।
नामक कान्य है।२१६॥ यह रस त्यागियों का धर्म स्वरूप है ।२०४६
विवेचनः--पादि पुराण में दंम सजा का वर्णन पाया है। उन्हीं के
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