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________________ रस सारपान समाप सिाब सय बगलारसदना गिरि गहे कन्दरवोळगे होकगे निन्छ । अरहन्त वारिणय बळि कु* सर मालेपोळगेल्ल भाषेय बलेसुव । गुरु परमपरे यादि भंग ॥१९४॥ रिक षि वर्धमानर मुखदनगवेन्देने । होसेवेल्ल मेयइन्द् वा होरटु। रस वस्तु पाहुड मंगल रूपद । असदश वयभवभाष ॥१६॥ वशाव दिव्याक्षरानक ॥१९६॥ रिषिवम्बा दादिय भाई ॥१९७॥ कसिय द्रव्यागम भाषे ॥१९॥ विष वाक्य सम्हार भाषे ॥१६६ वशवागलात्म ससिद्धि ॥२०॥ विषयाशा हरण दिव्यांग।।२०१॥ रसद् अरवत् नाल्कु भंक ॥२०२॥ यशवेरळ प्रन्गय बरेह ॥२०३॥ रस वस्तु त्याग घोंग॥२०४॥ यशदंक भन्ग भूवलय ॥२०५॥ रस सिद्धियाविय भन्ग ॥२०६॥ यशस्वति पुत्रियरन्गम् ॥२०७।। रस रेखेयतिशय काव्य ॥२०॥ रिण ज तत्व एकर भाजितदिम् बन्द ! अजनादि देवन बारिण। बिज दर वय विजय धवलवन्क राशिया जसिद अतिशय धवल ॥२०॥ बस रदवाद एळनूर हदिनेन्दु भाषेय । सरमालेयागलुम् विद् या सरणियोळ मूरुनूररवतन ग्रंकवे। परितरलागिरमतवम् ॥२१०॥ बुळिव धवलवु महा धबलांकद । बळिसार लेरडे भाषे ॥ कळे जोश व धर्मोस्तु मन्गलम् काव्ययु । बळिक श्री जय धवलांग ॥२१॥ क्षेत्र वागम स्तोत्रवादि महोन्नत । पाबन पाहुड प्रन्थ ॥ तीवे व र्पागम वेल्लवु तुम बिह । श्री विजयद भूयलय ॥२१२॥ पावन महासिदध काव्य ॥२१३॥ देवन बचन सिद्धान्त ॥२१४॥ शरो वीर वचन साम राज्य ॥२१॥ श्री वनवासिय काव्य ॥२१६।। देव जिनेन्दर वचन ॥२१७॥ देवरष्टम जिन काव्य ॥२१॥ देव शान्तोशन मार्ग ॥२१॥ देव प्रादोशन चरण ॥२२०॥ काब दोर्वलिय सौन्दर्य ॥२२॥ श्री विश्व सिद्धांत बचन।।२२२॥ वेयवारिणय दिव्य भाव।।२२३॥ भाव प्रमारगद काव्य ॥२२४॥ देवन भाव प्रमाण ॥२२५।। पावन तोर्पद गरिणत ॥२२६॥ ई वनवासद तीर्थ ॥२२७॥ भावद भल्लातकारि ॥२२॥ श्री विश्व भयषज्य ग्रन्थ ॥२२॥ पाय फर्मोवय नाश ॥२३०॥ साविर रोग विनाश ॥२३॥ शी वर सौभाग्य मंग ॥२३२॥ देवन वचन भूवलय ॥२३३।। व शबहुद् इल्लि शरी स्वसमय सारव । रसिकात्म ट्रष्य ध* रोस्तु ।। वशवाद घ्यात्मद सारसर्वस्ववे। रसद मंगल पाहुउवु ।२३४॥ न* बदन्कदिन बन्द कर्माक परिणतरे । अवतरिसिरुव घ * माक्ष॥रव ग्रंकद ध्यान स्वसमय काव्यदा सवियिह भद्र मंगलवु।२३५॥ दे* व जिनेन्द्रन वाणिय प्राभूत। दाविश्व काव्य दर्शन मो* कक्षावनि गोयपुव नेराद मार्गद। ई विश्व दतिशय धवल ॥२३६॥ पर बिहार दतिशय वेन्टन्क वागलु । गुडियतिशय काव्य सद स* द वडगुडिदागिल्लि बहवंक क्यभव। मरुडनञग धवल शुभ्रांक 1॥२३७॥ व वएसदतिशय महनीय वारिणय । सविय लाग्छनदुदयन तु विवरदजगोसाञग मिदु मधुरतेयिह । सबिवर दिव्य मन्गलवु ॥२३॥ रुशिसे 'ऋ' अक्षर हत्तन्तर। दिरुवनकववरलि बश्व ॥ में रकतवयदोम्बत् एल ऐग्रोम्दु । सरि गूडिसल 'ऋ' भूवलय ॥२३६॥ एक रिसि वरुवनकवा मूलदक्षर । वारयकेयतिशयमद् अन्न गट सेरलेन्ट नाल्केळु एन्टाद काव्यदु । दारते परसुव (दारतेये बर्ष) भअग ।।२४०॥ ऋ+८७४+अन्तर १५,७६५ - २४,५४३ अथवा प्र- ग, १७६,०२२+२४,५४३-२,००,५६५ ।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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