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________________ सिरि मूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ, बैंगसोर-विल्ली ज्ञानवर्ण आदि पाठ कर्मों को दहन करते हुए.मात्म कल्याण कराने कानडी भाषा में चरित मामक छन्द को सांगत्य कहते हैं। सांगत्य वाला यह भरत खण्ड है ।१५। अर्थात् दिगम्बर मुनि राजों का समूह ऐसा अर्थ होता है उन गुरु परम्परा से कर्नाटक अर्थात् पाठ कर्म के उदय से जगत के समस्त जीव कर्म में पाये हुए अर्थात् श्री बीरसेनाचार्य द्वारा सम्पादन किये हुए सद्ग्रन्थ को फंसे हुए है । इसलिए कानड़ी भाषा ही सभी जाबो को भाषा है । उदाहरण ले र रचना किये हुए इस भूवलय काव्य को बाचक काव्य भी कहा जाता लिए सर्व भाषामय काव्य भूवलय ही साक्षी है ।१८३। है ११६६! इस भारत वर्ष में सद्धर्म का प्रचार बहुत बढ़ जाने से सभी जनों में I हमारे (कुमदेन्दु आचार्य के) गुरु श्री बीरसेन स्वामी ने छाया रूप से धार्मिक चर्चा चलती थी ।१४। हमें उपदेश दिया उस गुरु का अमृत रूपी बाणो को गणित शास्त्र के सांचे में राज्य को अहिंसा धर्म से पालन करनेवाला चक्रवर्ती राजा राज्य करे। ढाल कर प्राचीन काल से आये हुए पद्धति के अनुसार मङ्गल प्राभूत के फर्मातो उनके शासनकाल में स्वभाव से ही अहिंसा धर्म का प्रचार रहता है ।१८ ! सुसार गुणाके सांचा में ढालकर हम (कुमदेन्दु प्राचार्य) ने अत्यन्त उन्नत अहिंसा धर्म ही इस लोक और परलोक के सुख का कारण है और दशा को पहुंचे हुए सात सौ अट्ठारह असंख्यात अक्षरात्मक भाषा युक्त रीति से इस ग्रन्थ को बनाया 1 इस अन्य की पद्धति बहुत सुन्दर शब्द गंगा से सुख का बर्वस्व सार है।१५६। लिखा है, अक्षर गंगा से नहीं। इसलिए सभी भाषायें इसके अन्दर प्रागई परस्पर प्रेम से यदि जीवन निर्वाह करना होतो परस्पर में सहकार! हैं । इस ग्रन्य के बाहर कोई भी भाषा नहीं है ।१९७-१९८० हो मुख्य कारण है और वही वर्म का साम्राज्य है ।१८७१ अत्यन्त सुन्दर रचना से युक्त कर्नाटक भाषा यह आदि काव्य है|१९l इस लोक में सभी को शौभाग्य देनेवाला यह अहिंसा धर्म हैं ।१८।। महावीर भगवान ने इस धर्म को मङ्गल स्वरूप से दान दिया है। . यह काव्य अंग ज्ञान द्वारा निकलने के कारण समस्त भाषा से भरा हुपा है। अंक लिपि सौंदरी देवी का है। उस अंक लिपि द्वारा हम बांधकर इस प्रन्य की रचना किये हैं । यह हृदय का प्रतिश्य थानन्द दायक काव्य है। गुफा में रहते हुए तपस्या द्वारा सिद्ध किया हुआ अहिंसा धर्म है ।१६० इस काव्य के बाहर कोई भी भाषा नहीं है। अगणित जीव राशि प्रादि की हिंसा को बिनाश करके अहिंसा की स्थापना करके सन्मार्ग बतलाने सभी पापा इसके अन्दर विद्यमान है। मंक अधि-देवता के गणित पाचा यह राधा का राजमार कर्म है ।१९१॥ द्वारा यह काव्य बांधा हुआ है 1२०० से २०४॥ सुख सिपभद्र इत्यादि सभी शब्द मङ्गल वाचक है । यह सब इस पह काव्य अनेक चक्र बन्धों से वंधित है ।२०५। राज्य में फैला हुआ था ।१६२१ अनेक प्रकार का जो भी चक्र बन्ध है वह सब इस भूवलय में उपलब्ध महानभानों को पैदा करनेवाला अर्थात् उन सभी का वर्णन करनेवाला हो जाता यह भूवलय ग्रन्थ है ।१९३। गणित में अनेक भङ्ग (गणित का नियम) होते हैं उनमें यदि मृग, महावीर जिनेन्द्र जी इस राज्य में बिहार किये थे 1१६४। पक्षी की भाषा निकालनी हो तो इसी गरिएत भङ्ग से निकालनी चाहिए ।२०७॥ सिद्धान्त को पढ़ते हुए अन्तर्मुहूर्त में सिद्धान्त के मादि मन्त को साध्य उस भङ्ग का नाम स्वर्ग बन्ध चक्रवन्ध भी है 1२०॥ करनेवाले राजा ममोघव के गुरु (प्राचार्य कुमुदेन्दु) के परिश्रम से सिद्ध गणित में [१] अगरिगत (२) गणित (३) अनन्त इस प्रकार से किया हुमा यह भूवलय काव्य है ।१९। भनेक भेद होते हैं ।२०६॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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