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खिर भूषलाय
सर्वार्थ सिद्धि संप बंगलौर-दिल्ली भाषाओं के जन्म और विकास पर भी ध्यान दिया जाय । हमारा प्राचीन साहित्य, सके हैं कि वह कौनसा अमोघवर्ष था जिसे गोबिन्दा राजा का पुत्र मानकर विज्ञान, आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र, धर्म, इतिहास, गणित आदि यदि पुनः प्रकाश में भूवलय अन्य' पढ़ाया गया था। लाए जाएँ तो मानव जाति की अधिक उन्नति और उद्धार हो।
यह एक मान्य ऐतिहासिक सत्य है कि प्रथम शिविमार जोकि सत्यप्रिय ऐसा कहा जाता है कि यो कुमुदेन्दु जी बेंगलोर से ३८ मील दूर नन्ची भी पुकारा जाता था और नवकामा ने ई० सन् ६७६ से ई० सन् ७२६ तक पर्वत के समीप 'येलेवाली' के निवासी थे और भूवलय प्रन्थ में यह स्पष्ट रूप से राज्य किया था। वणित है कि श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य राष्ट्र कूट के राजा अमोघ वर्ष और शिवमार
वीरसेन ने अपने धवल ग्रन्थ को विक्रमी राज्य (अट्टाठीसाम्मी शिष्य गंग राजा के धर्म प्रचारकों के गुरु थे।
३ विक्रम राय) के ३८ वें साल में समाप्त किया और यह विक्रम राय वही है जो श्री भूवनय ८ - १२६, ९ - १४६
कि मंग राजा विक्रम था। और सभी इतिहासज्ञों ने इसको भी सत्य-रूप ही ८- ६६, और ७२
मान लिया है कि विक्रम राजा ६०८ ई० में गद्दी पर बैठा था। और यह भी वरिणत है कि प्रसिद्ध जैन ग्रन्थ "धवल" के लेखक थी। कनाड़ी भाषा का शब्द "अट्टावीसाम्मी" कुछ विद्वानों द्वारा "पट्टाटीवीरसेन जी भूवलय के रचयिता थी कुमुदेन्दु जी के गुरु थे। ध्यानपूर्वक मना। साम्मी" मी पढ़ा गया है। के पश्चात् इस बात की जांच की गई है कि वीरसेन के धवल ग्रन्थ की समाप्ति 1 श्री विक्रम राजा ई० सन् ६०८ में राजगद्दी पर बैठा था और यदि ई० के ४४ वर्ष पश्चात् उनके शिष्य कुमुदेन्दु जी ने अपना स्मरणीय अन्य धो । सन् ६०८ में २८ साल जोड़ दिए तो "धवल पन्य" की पूर्ति का समय सन् भूवलय को लिखकर समाप्त किया था।
६३६ पड़ता है। नक्षत्र स्थिति जो कि "धवल" की पूर्ति के दिन वणित की गई लेकिन विद्वानों में घवल ग्रन्थ की समाप्ति और कुमुदेन्दु जी के जीवन । थी वह कार्तिक सुदी योदशी एक मम्बत् ५५८ को सिद्ध करने से ठीक ई० काल तथा भूवलय की समाप्ति के समय के विषय में पर्याप्त अन्तर है। अत: । सन् ६३६ ठहरता है। समय को ध्यान में रखते हुए उनके विचारों में काफी विवाद है।
। कुछ विद्वान सोचते हैं कि "श्री भूवलय" का समय ७ वीं शताब्दी के प्रो० हीरालाल जैन और डा. एस. श्री कन्था का विचार है कि धवल मंतिम चौथाई में होगा जबकि दूसरे विद्वान कहते हैं कि इसका समय दसवीं पर्व अन्य ई० सम् ५१६ के लगभग समाप्त हो गया होगा, जबकि जे० पी० जैन शताब्दी होगा, कुछ अन्य विद्वानों का कथन है कि 'श्री भूवलय ग्रन्थ' का समय कहते हैं कि धवल प्रथ ई. सन ७८0 के लगभग समाप्त हुमा मा तथा अन्य संगथ्या पीरियड में अर्थात् १२ वी या १३ वीं शताब्दी रहा होगा। क्योंकि विद्वानों का कथन है कि घवल ६३६ ई० में समाप्त हुआ था।
। कुमुवेन्दु द्वारा रचित "श्री भूवलय ग्रन्थ" संगत्या छंद में ही लिखा हुआ है। समंगद (Samengada) शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रकूट। और कुछ यहां तक भी कहते हैं कि यह अन्य अभी थोड़े ही समय का पुराना है राजवंश ई० सन् ७५३ में राज्य कर रहा था ।
पषिक नहीं क्योंकि थी भूबलय की भाषा आधुनिक कन्नड़ भाषा से मिलती तृतीय राष्ट्रकूट राजा गोबिन्दा जो कि सर्वस्या अमोषण का पिता था | जुलती है। ई. सन ८१२ के अपने एक शिलालेख में लिखता है । डेम्टोदुर्गा भी प्रमोष नाम ! समय की कमी के कारण अधिक विस्तार में न जाकर मैं इसी बात पर से पुकारा जाता था और इस शिलालेख के समय सर्वस्या अमोघवर्ष एक जोर देना चाहता हूं कि संगच्या छंद वारहवों और इसकी बाद की शताब्दी का बालक ही था इसलिए विद्वान निश्चित रूप से इस विषय का ज्ञान नहीं कर नहीं है जैसा कि कुछ व्यक्ति गलती से सोचते हैं।