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ना अध्याय
ॐ काव्यदतिशय ज्ञान साम्राज्य । शरीकर वय्भव भद्र ॥ भू* फरवाद भूवलय सिद्धान्तके । ऊ काव्यवादियोळ् नमिपे ॥१॥ व शवा लोक अलोक भूवलयद । तरस नालियोळहोरगिरुख ॥ यश त* नियाद ज्ञानद धनवदनाळव । रसवे मन्गळद पाभरुतये ॥२॥ म नदि प्रकाशवाय सूर्यनो एमब । जिनदेवनन्तरदन ब बनुभव तावरेयग्र सिमहद अगर । बतुमेट्टबिरुव नाल्वेरळ ॥३॥ व तियोळु निदिह अथवा कुळितिर्य । स्थितिय दरत्यरिय शिक्षा के प्रतिक्षा मबननालकर काव्यदा हितदक्षरदनक ई॥४॥ र* सिकद बेवरिल्ल निजदेह निर्मल । होसदेहरक्त बिळिया सु* तसमाचक्त्र वषभ नाराचद। यशदादि समहननात्ग ॥५॥
वश सम चतुरस्रवेनिप ॥६॥ असमान देह समस्थान ॥ यात्रनुपमरूप कादति ॥ रसग्रन्थ सम्पगेयन्व ॥६॥ यशद साबिरदेन्टु चिन्ह ॥१०॥ यश बल वीर्य अनन्त ॥११॥ हस गित मधुर भाषरणतु ॥१२॥ दशभेदतु स्वाभाविक ॥१३।। वशथिवु जननातिशयवु ॥१४॥ रसद हत्त अन्कद चिन्हे ॥१५॥ विषहरदमरुत शरोर ॥१६॥ कुसुमदग्रद जिन देह ॥१७॥ ऋषिगळाराधिप देह ॥१८॥ जसवे महोन्नत देह ॥१६॥ रससिद्धि गादिय देह ॥२०॥ विशमसमान कद बेह ॥२॥
कुशदग्र बुद्धिधिदेह ॥२२॥ रसरवन मूरात्म देह ॥२३॥ उसहादि महावीर देह ॥२४॥ यशविह काव्य भूवलय ॥२५॥ भू वलयवनेलल नालकु विशेगळलि । काबुत नूरु योजनद । ठाय रा* मुभिक्षतेयनउन्टु माडुत । ताउ आकाशदे गमन ॥२६॥ वर रे हिस्सेय अभाव उण्णद लिस्बन्थ । परिपरियुपसर्ग धरिस॥ रिरुवनाल्दिशेमुखनेरळबीळदलिह। परियन्दरेप्पेयनोट ॥२७॥ ल- कक्स विड्येमळेल्लर ईश्नत्व । रकषिप उगुर कोळविह।। रक्षिसि कूरलु समनागिरपुदु । रक्षेय हदिनेन्टु भावे ॥२॥
र शद सिपियन्क कषुदर एछन अनक । वश समज्ञरिजीव प्रा वाय।। यशचनकाक्षर अक्ष भाषामय । बशभष्यपुपदेशवीबार॥ मानद अस्खलित सधभावद अनुपम । चनधिघोषद दिव्य त * प्राद। जिनरदिव्यध्वनिमूस्सन्जयेबर्प । धनझोम्चतमुहरतपळ॥३०॥
सनिस तुटियळाटलि ॥३१॥ जनिसे सललुगळाट रहित ॥३सा धन तालु पोष्ट बेकिल्ल ॥३३॥ जनकेल्ल प्रोम्वे समयदि ॥३४॥ जिनतुपदेशवागुयुदु ॥३५॥ धन प्रोमदु योजन हरिदुम् ॥३६॥ गणधर परशनेगुत्तरदे ॥३७॥ जिनवारिण बेकागे बहुदु ॥३॥ मनुज चक्रियप्रश्नेयन्ते ॥३६॥ जिनवारिण युत्तर बहुदु ॥४०॥ कोनेमोदलननु तुळुवुदु ॥४१॥ धनद्रव्य प्रारम पेळूवुः ॥४२॥ धन तत्व एकर कथन ॥४३॥ दनुभव नववस्तु कथन ॥४४॥ तनि ऐद यास्थिकायगळम् ॥४५॥ धन हेतुळिम पेन्दु ॥४६॥
जिन विव्यध्वनि सार ॥४७॥ कोनेय प्रमारण भूवलय ॥४८॥ तिक रेयोळाश्चर्यद हतप्रोमद् अतिशय वेरसिद जिन देव य शदा परियुकेवलज्ञानवागतुबरुबुदु । प्रहगे पातिब कवदि ven य वेय काळिन अष्टकर्मवु निलदिरे । सवेयदलिह अनुभव म । अवतारदनिशयहोमवर् अम्बके । सघि धातिक्षयातिशय ॥५॥ र सदात्मनेनुबरहनत पप प्राप्त । यदिव्यात् मनन न* तावश गुरणसमधनाद तेजोनिधि । रससिद्धिगादिय वस्तु ॥११॥ ए वकार मन्तरद मुरुमूरलोम्बत्त । रवरलि गुणाकार च क षु। विवरदद्षटिभेदमळनुतिळिविह । नवकारवतिशय वस्तु ॥५२॥
३४३ = E जवननोडिप दिव्य चक्षु ॥५३॥ नवकारकादिय वस्तु ॥५४॥ सुविशाल जगद साम्राज्य ॥५॥ - नवनबोदित दिव्य ज्योति ॥५६॥ कविगे सिक्कद दिव्य रूप ॥७॥ अवयव सुपवित्र पूतम् ॥५॥