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________________ १२॥ सिरि भूवलय सर्वाप सिद्धि संघ बैंगलोर-विल्ली रखकर उनका आपस में जोड़ दें और जोड़ने पर जो संख्या आवे उसका चार छियानबे उपवास और पारणा इकसठ कही हैं। इसका प्रस्तार सोलह के अंक को से गुणा करदें, इस रीति से गुणा करने पर जो संख्या सिद्ध हो उतने तो उप-1 अधिक रखकर पंद्रह तक बतला पाये हैं। वहां पर भी एक से लेकर पंद्रह तक वास और जितने स्थान हो उतनो पारणा समझनी चाहिए अर्थात् इस जघन्यकी संख्या का प्रापस में जोड़ देने पर जितनी संख्या आवे उसका चार से गुणा सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत में एक से पांच तक की संख्या जोड़ने पर १५ होते हैं और करे और गणित मच्या में जो सोलह का अंक अधिक बतला माये हैं उसे बोड़ पंद्रह का चार से गुणा करने पर साठ होते हैं। इसलिए इतने तो उपवास है द और जोड़ गरणा करने पर जितनी संख्या निकले उतने इस व्रत में उपवास और स्थान बोस होते हैं इसलिए पारणा बीस है। मध्य सिहनिष्त्रीडित में समझने चाहिए और जितने स्थान हों उतनी पारणा जाननी चाहिए अर्थात् तिरेपन उपवास और तेतीस पारणा बतला पाये हैं और नौ के अंक को शिखर एक से पंद्रह तक जोड़ने पर एकसोबोस होते हैं। एकसौबीस का चार से गुणा पर रखकर पाठ अंक तक का प्रस्तार बतला पाये हैं । वहां पर एक से लेकर पाठ करने पर (१२०x४:४८०) चारसी अस्सी होते हैं और इनमें जो सोलह तक संख्या रखकर आपस में जोड़ दें और जोड़ने पर जितनी संख्या आवे उसका ! अधिक बतला पाये हैं उन्हें मिला देने से चारसौ छियानबे हो जाते हैं। सो चार से गुणा करें तत्पश्चात् गुणित संख्या में जो नौ गिरकर बलला बारसौ छियानवे तो इस व्रत में उपवास होते हैं और स्थान इकसठ है इसलिये पाये हैं उसे जोड़ दें इस रीति से जितनी संख्या सिद्धहो उतने इस मध्यसिंहनिष्को-1 पारणा इकसठ होती हैं। इस क्रम से जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट सिहनिष्क्रीडित डितमें उपवास हैं और जितने स्थान हैं उतनी पारणा है अर्थात् एक से पाठ की उपवास और पारणाओं की संख्या जाननी चाहिए । जो मनुष्य इस परमतक को संख्या का जोड़ देने पर छत्तीस होते हैं 1 छत्तीस का चार से गुणा पावन सिहनिष्क्रीडित व्रत का प्राचरण करता है उसे वजवृषभ नाराचसंहनन करने पर एकसौ चौबालिस होते हैं और उसमें मी जोड़ देने पर एकसी तिरपनाको प्राप्ति होती है, अनन्त पराक्रम का धारक हो, सिंह के समान वह निर्भय हो जाते हैं। इसलिए इस व्रत में एकसौ तिरेपन तो उपवास होते हैं और स्थान हो जाता है और शीघ्र ही उसे अणिमा महिमा आदि ऋद्धियों को भी प्राप्ति तैतीस हैं इसलिए तेतीस पारणा होती है। उत्तम सिंहनिष्क्रीडित में चारसी हो जाती है।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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