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________________ १२५ सिरि भूवलय मर्वार्थ सिद्धि संप मैगनौर-दिल्ली सुत्रत तीर्थकर के सिंह का वर्ण नील है तथा श्री नेमिनाथ, पद्मप्रभु और वासु- इस पर्वत पर रहने वाले जैन मुनियों के पास सभी धर्मवाले पाकर पूज्य इन तीनों तीर्थंकरों के सिंह का वर्ण रक्त है । ५३ । धर्म के विषय में पूछताछ करते थे और समाधान से सन्तुष्ट हो जाते थे इसलिए पाठ तीर्थंकरों के सिंहों का वर्ण श्वेत, पीत, नील तथा रक्त वर्ष का , इसको तीन सौ सठ धर्मों का सहचरगिरि भी कहते हैं 1६४४ है किन्तु शेष सोलह तीर्थंकरों के सिंहों का वर्ग स्वर्ण रम तथा स्फटिक मरिण मुनियों के नाना गरा गच्छों की उत्पत्ति भी इसी पर्वत पर हुई थी के समान है ।५४॥ इस लिये इस गिरि का नाम गुरु गण भरत गिरि भी है ।६५। महावीर भगवान का सिंहासन स्वर्ण मय तथा प्रादि तीर्थकर श्री आदि- जिन गङ्ग वंशी राजाओं का वर्णन ऋग्वेद में पाता है वे सब राजा नाथ भगवान का नन्दी पर्वत पर स्थित मिहासन स्वर्ण मय है। क्योंकि यह । जैन धर्म के पालने वाले थे तथा गणित शास्त्र के विशेषज्ञ थे। उन सब राजायों स्वाभाविक ही है, कारण यह स्वर्ण उत्पति का ही देश है। यह नन्दी पर्वत की राजधानी भी इस पर्वत के प्रदेश में हो परम्परा से होती रही थी इसलिए अनादि काल से लोक पूज्य है ।५.५।। । इस का गंग राजानों के गणित का मिरि भी कहते हैं।६६। गंग वंशीय राजा इस अनादि कालीन पर्वत को पूज्य मानते थे ।५६।। विद्याघरों को भांति इस पर्वत पर अनेक मान्त्रिकों ने विद्यायें सिद्ध की महावीर भगवान के निकट नाथ वंशीय कुछ राजा दक्षिण देश में आकर थी इसलिए इसको गहन विद्याओं का गिरि भी कहते हैं । ६७। नन्दी पर्वत के निकट निवास करते थे वे "नन्द पुद" कुलवाले कहलाते थे।५७।। इस पर्वत के पाठ शिखर बहुत ऊंचे ऊंचे हैं। इसलिए इसको अष्टापद महावीर भगवान के कुल में मेव्य होने के कारण इस नन्दीगिरि को महति । भी कहते हैं । इस पर्वत पर से नदी भी निकल कर बहती है तथा इस पर्वत महावीर नन्दी कहते हैं ।५८ पर अनेक प्रकार की जड़ी बूटी भी हैं जिनको देखकर लोगों का मन प्रसन्न अनेक जैन मुनियों का निवास स्थान होने से इस पर्वत को इह लोक का हो जाता है और हंसी आने लगती है । इसलिए इस पर्वत का नाम 'हंसो पर्वत मादि गिरि भी कहते हैं । ५६॥ भी है ।। अनेक सूक्ष्म गणित शास्त्रज दिगम्बर जैन मुनि यहां निवास करते थे जिस प्रकार सभी अहमिन्द्र एक सरीने सुखी होते हैं उसी प्रकार इस इसलिये इस गिरि का 'सुहमांक गणित का गिरि' भी नाम है 1६०। पर्वत पर रहने वाले लोग भी सुखी होते हैं। इसलिए इसको भूलोक का इस पर्वत पर निवास करने वाले ब्राह्मण क्षत्रिय महर्षि लोग उग्र-उग्र तपस्या | अहमिन्द्र स्वर्ग भी कहते हैं ।६६। करने वाले हो गये हैं जिनको घोराति घोर उपसर्म आये हैं फिर भी क्षत्रियत्व कल्प वृक्ष कहां हैं ऐसा प्रश्न होने पर लोग कहा करते थे कि इस नन्दी के तेज को रखने वाले उन महर्षियों ने उन उपद्रवों का सहर्ष सामना किया गिरि पर है इसलिए इसका नाम 'कल्पवृक्षाचल' भी है 1७०) था और उन पर विजय पाई थी। इसलिए इसको महाबत भरतगिरि भी कहते कल्वप्यूतीर्य, कावलाला और तालेकाया यह सब नंदी गिरि पर राज्य हैं यहां पर भरत के माने शिरोमणि के हैं । ६२।। करने वाले गंग राजाओं की राजधानी भी थी ।७१-७२। इन महपियों को सिहनिःक्रीहितादिसरीखी तपस्या को देखकर आश्चर्य विशेष विवेचन-जहां पर जगदाश्चर्यकारी श्री बाहुबली की प्रसिद्ध चकित होकर अनेक अव्रती लोग भी अणुव्रतादि स्वीकार करते थे इसलिये इस मूर्ति है जिसको भाज धवण वेलगोल कहा जा रहा है उस क्षेत्र को पहले कल्वपर्वत को अणुव्रतनन्दी भी कहते हैं। प्युतीर्थ कहते थे वह प्रदेश भी मंग राजामों की अघोनता में था जो कि नान्दी इस पर्वत पर रहने वाले मुनि लोग अनुपम क्षमाशील हो गये हैं इसलिये। गिरि से एक सौ तीस मील पर है और नन्दी गिरि से तीस मील की दूरी पर इस पर्वत को 'सहन करने वाले गुरुओं का गिरि' भी कहते हैं ।६३१ एक कोवलाला नाम तीर्थ था जिस को आज 'कोलार कहते हैं जिस पर सोने
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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