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________________ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ मंगलौर-दिल्ली राशि ज्ञानव होरडिपुदु ॥१०६॥ श्री सिद्ध पदवसाधियुद्ध ॥१०॥ राशियनोमदुगुडिपुदु ॥१०॥ ईशत्यवदनु साधिपु० ॥१०॥", ईषत्प्राग भारकेयदिपुदु ॥११०॥ राशि सूक्ष्मत्व साधिपुदु।।१११॥ प्राशेयव्याबाधवहुदु ॥११२॥ नाशत्वेल्लगेल्युदु ॥११३॥ प्रोषध रूप वागिपुबु ॥११४॥ प्रोषधवम्त बागिपुदु ॥११५॥ राशिय वगाहवागिपुदु ॥११६॥ लेसिनगुरु लघुवहुन् ॥११७॥ लेसनेल्लरिगे तोवुदु ॥११८॥ प्रा शक्तियनुभव काव्य ॥११॥ श्रीशक्तियादयन्कवलय ॥१२०॥ भूषणवाक्य भूबलय ॥१२शा के* ळुव भव्यर नालगेयप्रद । सालिनिम् परितन्दुदनु ।। काल क* लापद अरवत्तु साविर । लीलेयान्के गुत्तरवम् ॥१२॥ व रदवागिसि प्रतिसरलवनागिसि। गुरु गौतमरिन्द हरिसि।। स * वान्कद् अरवत्ताल्क अक्षरदिन्द । सरिश्लोक पार लक्षगळोळ् ॥१२॥ लि* पियु कर्माटक वागलेबकेम्ब । सुपवित्र दारिय तोरि ।। मप ता* ळलयगडिद् प्रारुसाविर सूत्र । दुपसम्हार सुत्रदल ॥१२४॥ गो* प्रागमद्रव्य शास्त्र वागिसिदन्क । ई आगम द्रव्य व र* द॥ ऊ प्रागमद दिध्याक्षर स्वरदोळु श्री प्रागमद भूवलय ॥१२॥ ता प्रागतद सिद्धान्त ॥१२६॥ को आगमनलेके ।।१२७॥ णो आगम भाव काल ॥१२८॥ सो अागमद (अनन्त) अन्तरवु ॥१२॥ पो आगमतव्यतिरिक्त ॥१३०॥ श्री प्रागमक्षेत्र स्पर्श ॥१३॥ गोमागमाल्प बहुत्व ॥१३२॥ श्रीग्रागतद सिद्धांत ॥१३३।। गो पागम बंध द्रव्य ॥१३४॥ आ आगमद अबंध ॥१३५॥ श्री प्रागम सम्ख्यदक ॥१३६॥ श्री प्रागतदि बन्दिरुय ॥१३७॥ ई प्रागमद भूवलय ॥१३॥ अष्टमहाप्रातिहार्य वय्भववे। अष्टमहा पाडिहेरा ॥ उस ह* जिनेन्द्रादिगळिगे केवलज्ञान । बेसेद अशोककक्षगळ ॥१३॥ ब* रद नामगळोळु न्यग्रोधयु प्रोम्दु । वर सप्तपरान्क ग* ॥ एरडागेशालसरलप्रियन्यु प्रियन्गुम । बरलु मूर्नाळकल्दारु ॥१४०।। ल* क्षरणवा शिरीषतु एळु श्रीनाग। वक्ष अक्षवु धूलियव एक ॥ वृक्ष पलाश एन्टोम्बत्तु हतग्रंक । लक्षिसे हन्नोम्दरम्क ॥१४॥ म रळि पाटलवु नेरिल दधिपर्णबु । वर नन्दिहन्एरड्य ध र ॥ सररिण हदिमूर्हदिनाल्कूहदिनय्दु । बरलु तिलक हदिनार ॥१४२॥ बिळिमानु कनकेलि सम्पगे बकुल । बळिहन्एल्हदिनेन्दु ।। सळ र स विहत्तोम्बत्इप्पत्तु मेषवरना । प्राळिमलेयोळग इप्पत्योम्दु ॥१४३॥ यश धूलियुधव शालविन्तियुगळ । वशइप्पत् एरडदु वर दे* रसद् इप्परमूरिप्पलाल्कू एनुवन्क । रस सिद्धिगादि अशोक ॥१४४।। यशद मालेगळ तोररादि ॥१४॥ असमान घंटेय सरदिम् ॥१४६॥ यश मन मोहक वेनिप ॥१४७॥ असमान रमणीयवेनिसि ॥१४॥ यशदना राग पल्लवदि ।।१४६॥ यशवे पुष्प सम्कुलदि ॥१५०॥ वशवप्प रससिद्ध हूवु ॥१५१॥ रसमरिण गादिय हुषु ॥१५२॥ यशस्थति देविय मुडिपु ॥१५३॥ कुसुम कोदन्डनम्बच्चु ॥१५४॥ असदृश कामित फलद ॥१५॥ यशद् बळिगळ हुटंग ।।१५६।। विषहरवाद अमरुतयु ॥१५७11 कुसुमाजि मुडिदलन्कार॥१५॥ रस घट्टिगादिय भन्ग ॥१५॥ यशद कोम्बेगळ भूवलय ॥१६॥ स्थ वणत्यसिद्धिय शोकवादिय दिव्य । नववक्ष जातीय वा* ॥ अवगळु तमगिन्त हनएरडष्टुह । नव रस्त वर्षशोभेगळ् ॥१६॥ व* रनवेके देवेन्दरतुदद्यानदि । निर्वाहवागन् अगिढ़दे ॥ ह* पवनीवुदेवदेनलेके साकद । निर्मल तीर्थमन्गलव ॥१२॥ व रद हस्तद तेरनाद छत्र त्रय । परहंत शिरवलिर् प* प्राग। हरषदचन्द्रमण्डल मुक्ताफलज्योति। वेरसि निदिहुद शोभेयलि।१६३ - ---
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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