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________________ सिरि भूगलय सर्वार्थ सिद्धि संघ, बैंगलोर-दिल्ली है। इस तरह अपने अपने स्वरूप में सभी मुख्य और पर रूप से देखने पर गौण महान् काव्य है ।१११॥ बनते रहते हैं । इस स्याद्वाद पद्धति से स्याद्वाद, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र यह भूवलय जिनेश्वर भगवान का वाक्या५ है ।११२॥ का पूर्णतया प्राप्त होना ही परमात्मा का स्वरूप है । और यही प्रदत है ।१०२।। यह भूवलय मन शुद्ध्यात्मक है ।११३। इस प्रकार जो विद्वान पूर्वोक्त तीनों प्रानुपूर्वियों का ज्ञान प्राप्त कर शरीर विद्यमान रहने पर भी उसे अशरीर बनाने वाला यह भूवलय लेता है उसका हृदय विशाल बन जाता है, क्योंकि उसमें समस्त धर्मो का है ॥११६।। समन्वय करने की योग्यता आ जाती है। और उसके विचार में फिर सभी जिसको कि तुम स्वयं अवगत किये हुए हो, ऐसे व्यतीत कल में अनादि धर्म एक होकर परम निर्मल अद्वैत स्थापित हो जाता है। ! काल छिपा हुआ है । आज यानी-वर्तमान काल में तुम मौजूद ही हो, अतः वह इस प्रकार अद्वैत का परमः श्रेष्ठ हो जाना जैनियों के लिए कोई स्पष्ट ही है । इसी प्रकार पाने वाले कल में अनन्तकाल छिपा हुआ है। परन्तु आपत्ति कारक नहीं है। क्योंकि हम यदि गम्भीरता से अपने मन में विचार जब तुम रत्नत्रय का साधन कर लोगे तो बीते हुए कल के साथ में आने वाले करके देखें तो जैनियों के जिनेन्द्र देव द्वारा प्रतिपादितः यह भूवलयः शास्त्र कल को एक करके स्पष्ट रूप से जान सकोगे । एवं अपने पाप में तुम स्वयं अनुभव रूप है । अर्थात् अचित् द्वैत रूप है, तो कथंचिक अष्ट्त रूप है और अनाद्यनन्त हो जाओगे । अतः प्राचार्य का कथन है कि तुम भरसक रलत्रय कथंचित् द्वं ताहत उभय रूप है। अतएव अपंचित् दोनों रूप-भी नहीं है। साधन करने का सतत पल करो ॥११७॥ इस प्रकार उभय अनुभव इन दोनों की धनसिद्ध-(समष्टि) रूपब यह भूषलय इस प्रकार सच्चा रत्नत्रय प्राप्त हो जाने पर समतारूपी खडग के द्वारा ग्रन्थ है ॥१०४। क्रमशः क्रोध, मान, माया लोभ का नाश करके आत्मा विमलांक बन जोती है इसलिए यह भूबलय दिव्य सिद्धान्त ग्रन्थ है। यानी सर्वसम्मत-ग्रन्थ । और इसी का नाम अनागत काल है । इसको बताने वाला भूवलय है ॥११॥ है मर्थात् सबके लिए माननीय है ।१०॥ मन के दोषों को दूर करने वाला अध्यात्मशास्त्र है, जो कि इस भूवलय वस्तुतः यह भूयलय ग्रन्थ जिन सिद्धान्त अन्य है ०६। में भरा हुआ है। बचन के दोषों को दूर करने वाला व्याकरण शास्त्र है, वह प्रारम्भ से लेकर अन्त मक समान रूप से चलने वाला अंकमयः यह भी इसी भूवलय में गभित है। इसी प्रकार शारीरिक वातादि दोषों को दूर - भूवलय ग्रन्थ है ।१.०७।। करने वाला १३ करोड़ मध्यम पदात्मक वैद्यक शास्त्र भी इस भूवलय में या आत्मा का स्वरूप धन स्वरूप है इसलिए यह - धन धर्मांक- भवलया गया है। इसलिए मन, वचन व काय को परिशुद्ध बनाने वाला यह भूवलय है।१०८। है ॥११॥ अंक में संख्यात असंण्यात और: अनन्त ऐसे तीन भेद होते हैं। अनन्त यह भूवलय भगवान् की दिव्य ध्वनि से प्रगट हुआ है। अतः यह भी केवली-गम्य है। रस. अनन्त राशि को जनता को बनाने वाला यह भूवनय (शोभावान्) बचन होने से अत्यन्त मृदु, मधुर और मिष्ट है 1 तथा हृदय कमल है ।१०६॥ पर पाकर विराजमान होने से मन को प्रफुल्लित करने वाला है और मन जब अनन्त अंक का दर्शन होता है तब सिद्ध परमात्मा का शान हो। प्रफुल्लित हो जाने पर भविष्यत् काल भपी कल पूर्ण रूप से अवगत हो जाता ...जाता है इसलिए नाम सिद्ध भूवलय है ।११०॥ है तथा प्रात्मा अद्वैत बन जाती है ॥१२०॥ यह भूवलय ग्रन्थ विन्दी से निष्पन्न होने के कारण अणुस्वरूप है और यह भूवलय ग्रन्थ भूत भविष्यत् वर्तमान कालों को एक कर के बतलाने अनम्नानन्त अर्थात् ६ तक जाने के कारण महान् भी है। इसलिए यह मां-बाला, दैत अद्वैत और जय इन तीनों को एक कर बतलाने वाला एवं देव,
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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