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________________ इस भव वनमें वे!, ये दोऊ तरु जाने। जो मन माने वे!, सोई सींचि सयाने।। सींचि सयाने! जो मन माने, वेर वेर अब कौन कहै। तू करतार तुही फल-भोगी, अपने सुख दुख आप लहै । धन्य! धन्य! जिन मारग सुंदर, सेवन जोग तिहूँ पनमें । जासों समुझि परै सब 'भूधर', सदा शरण इस भव-वनमें ।।५।। ए मेरे मन ! तू यह विवेकपूर्ण सौख सुन। हे ज्ञानी। श्री जिनवर के चरणों के प्रति तू प्रीति कर, उनमें रम जा। हे सुज्ञानी ! तू भक्ति कर । वह मोक्ष-सुख को देनेवाली है ! यह भर-सम्पत्ति, यह जीवन पाँच दिनों का है, कुछ ही काल का हैं। जिनेन्द्र के चरण-कमलों की भक्ति बिना यदि करोड़ों वर्ष भी जीवे तो उसका क्या प्रयोजन? यह अति उत्तम मनुष्य पर्याय पाकर अपने अन्तर में रहने का लाभ ले । अत्यन्त अनुभव के पश्चात् श्री गुरु ने विवेकपूर्ण सीख दी है, उसे ग्रहण कर। अन्य की संपत्ति को देखकर तू.ललचा भत, पूर्व में जो तूने बोया है वही (फसल) काटने होंगे। तूने जो किया तुझे उस ही का फल तो मिलेगा। जो तूने "पहले कमाई की, उसके फलस्वरूप तूने जो संपत्ति पाई उसको देख -देखकर दुः ख क्यों करता है, दु:खी होकर क्यों मरता है? काँटों से युक्त बबूल बोकर के तू आम की आशा कैसे करता है ? हे मनुष्य! अब भी यदि तू कुछ समझ सके तो तुझे पर-भव में सुख के दर्शन हो सकेंगे। तू अपने स्वभाव का ध्यान कर, दान कर, तप कर, संयम का पालन कर । अन्यजनों के वैभव को देखकर मत तरस अर्थात् तृष्णा मत कर, ईर्ष्या मत कर।। जगत में जो सुंदर और सुखदायी दिखाई देता है वे सब धर्मरूपी कल्पवृक्ष के फल हैं । तेज दौड़नेवाले घोड़े, ऊँचे-ऊँचे हाथी, नौ निधि, चौदह रत्न, छ: खण्ड पृथ्वी, रति से भी अधिक सुन्दर स्त्रियाँ, छियानवे हजार नारियाँ, ये सब धर्म के फलस्वरूप हैं और जगत में काँटों की बाढ़ से घिरा, जो असुन्दर लगता भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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