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राग ख्याल गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गंवार ।। टेक ।। झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजै रे ।। १॥ गरव. 11 कै छिन सांझ सुहागरु जोबन, कै दिन जगमें जीजै रे ॥२॥गरव.॥ बेगा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बढ़े थिति छीजै रे॥३॥ गरव.।। 'भूधर' पलपल हो है भारो, ज्यो ज्यो कमरी भीजै रे ॥४॥गरव. ।।
हे अज्ञानी मनुष्य! तू गर्व मत कर, यह तेरी देह अविश्वसनीय है।अस्थिर है।क्षणिक है, तेरी धन-सम्पत्ति सब अविश्वसनीय/अस्थिर है, क्षणिक है । सब छाया के समान अस्थायी है। संध्या, सुहाग और यौवन जगत में कितने दिन, कितने समय तक रहता है ? तुझे जगत में कितने दिन जीना है? तू बिना देरी किए जल्दी ही अब चेत । बंधन बढ़ते जाते हैं और आयु छीजती चली जा रही है। समय बीतता जा रहा है । भूधरदास कहते हैं कि जैसे ज्यों-ज्यों कंबल भोगता जाता है त्यों-त्यों उसका भार बढ़ता जाता है। वैसे ही ज्यों-ज्यों उमर/आयु बीतती जाती है त्यों-त्यों प्रतिपल कर्मों का भार बढ़ता जाता है।
भूधर भजन सौरभ