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________________ मास तुषारसों, दाहै पोखरां, दाहै थरहरै जब शीत मास जमै पानी जब सकल सबकी सबकी वनराय । काय ॥ तीर । पीर ॥ ७ ॥ तब्ब नगन निवसैं चौहदैं, अथवा नदीके ते साधु मेरे उर / मन बसो, मेरी हरो पातक कर जोर 'भूधर' बीनवै, कब मिलें वह यह आस मनकी कब फलै, मेरे सरें सगरे संसार विषम विदेशमें, जे बिना जे बिना ते साधु मेरे उर / मन बसो, कारण मुनिराज । काज ॥ वीर । मेरी हरो पातक पीर ॥ ८ ॥ मैं उन दिगम्बर गुरु के चरणों की वन्दना करता हूँ, जिन्हें इस जगत से तारनेवाले जहाज के रूप में जाना जाता है। जो भ्रमरूपी, अज्ञानरूपी कठिन/ असाध्य रोगों के निवारण के लिए विशेषज्ञ वैद्य हैं। जिनकी कृपा के बिना यह वे कर्म - श्रृंखला नष्ट नहीं की जा सकती, काटी नहीं जा सकती, मेरे हृदय साधु में निवास करें, मेरे पापों की पीड़ा का हरण करें, उन्हें दूर करें। I यह देह अपवित्र है, मैली है और यह संसार सारहीन है। ये विषय-भोग विषैले पकवान की भाँति हैं, इस प्रकार विचारकर तप करने हेतु श्री मुनिराज सब परिग्रह छोड़कर भीड़ से दूर निर्जन वन में रहते हैं, वे साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों की पीड़ा को दूर करें । जो काँच - कंचन, शत्रु-मित्र, निंदा-बड़ाई, वन और सुन्दर शहर में भेद नहीं . करते अर्थात् सबको एक समान मानते हैं; सुख-दुःख, जीवन और मरण में न उन्हें खुशी होती हैं और न उदासी, वे साधु मेरे हृदय में निवासकर मेरे पापों की पीड़ा को दूर करें। जो बाहर वन में, पर्वत पर रहते हैं, पर्वतों की गुफाएँ ही जिनके लिए मनोज्ञ महल हैं, पाषाण की शिला ही जिनके समताभाव की साथी हैं और चन्द्रमा की किरणें ही दीपक हैं, चन्द्रमा की शीतलता ही जिनका भोजन हैं और निज का ज्ञानवर्द्धन ही निर्मल जल है जिनका वे साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों की पीड़ा को दूर करें । भूधर भजन सौरभ ६९
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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