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जीवंधर सेठ ने पापी कुत्ते को संबोधित किया और यह मंत्र सुनाया । इस मंत्र के प्रभाव से उसने स्वर्ग के सुन्दर विमान में जाकर जन्म लिया।
इस प्रकार इस मंत्र से बहुत प्राणी लाभान्वित हुए हैं, बहुत से प्राणी संपन्न हुए हैं, संपन्न हैं और आगे भी होंगे, उनके नामों का वर्णन करते-करते कोई उनका पार नहीं पा सकता । सोते-उठते-बैठते अपराजित इस मंत्र का, आदि से अंत तक सर्वथा इसका चिन्तन कर, तू इसका विस्मरण मत कर।
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सारे लोक में सब काल में सम्पूर्ण आगम का सार यही है। भूधरदास कहते हैं - यह मंत्रराज है, इसको हृदय में धारण करना, कभी भी इसका विस्मरण मत करना ।
छाग
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बकरी | चहला - कीचड़ । खग - • विद्याधर । जीवक सेठ जीवन्धर सेठ ।
भूधर भजन सौरभ
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