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________________ यह स्वभावरूप से अनादि से है, इसमें पैंतीस मधुर अक्षर हैं। गणधर देव ने बताया है कि इसके जप से समस्त पापों का नाश होता है । दृढ़ श्रद्धा रखकर, सब शंकाओं को छोड़कर, निशंकित होकर, जो कोई भी शीलवंत नर-नारी मन में इसका स्मरण करते हैं वे वांछित फल प्राप्त करते हैं। इस मंत्र के स्मरण से सर्प और सिंह का भय नहीं रहता, अनेक विघ्न टल जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं; व्यंतर आदि की विषम व्याधि भी दूर हो जाती हैं, भाग जाती है और एक भी विपत्ति नहीं ठहरती । - मुनिराज ने सम्मेदशिखर पर एक बंदर को यह मंत्र दिया तो वह चौथी गति में अर्थात् स्वर्ग में देवगति में उत्पन्न हुआ। पद्मरुचि सेठ ने बैल की पर्याय में इसे सुना, वह मनुष्य व देव गति के सुखों को भोगकर राजा सुग्रीव हुआ । सुलोचना ने विंध्यश्री को यह मंत्र दिया, जिसने सर्प बनकर उसा था वह गंगादेवी के रूप में प्रकट हुई। वणिक ने चारुदत्त से कुए के बीच में और बकरे ने पहाड़ के ऊपर यह मंत्र सुना और सुनकर (दोनों ने) देवगति पाई । - पार्श्व जिनेन्द्र ने नाग-नागिनी को जलते देखकर यह मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वे धरणेन्द्र और पद्मावती हुए । कीचड़ में फैंसी हथिनी को विद्याधर ने यह मंत्र सुनाया और वह मरकर परम सती सीता के रूप में जनमी । जब फाँसी पर चढ़े हुए चोर के कंठ में प्राण थे अर्थात् जब वह मरणासन्न था तब उसने जल की याचना की तो सेठ ने उसे यह मंत्र सुनाया और मंत्र के प्रभाव से वह मरकर स्वर्ग में देवगति में उत्पन्न हुआ। चंपापुर में ग्वाले ने मंत्र को बार-बार दुहराया तो वह सेठ सुदर्शन के रूप में जन्म लेकर उसी भव से मुक्त हो गया। इस मंत्र के महात्म्य की कथा के प्रभाव से किस-किस को क्या-क्या हुआ उसी की सूचना पुण्यास्त्रव कथाकोष में है। जो उस ग्रंथ को सुनता है वह ही तिर जाता है । अंजन चोर जैसा महापापी जो सप्त व्यसनों में लिप्त था, उसने मंत्र पर श्रद्धा की और उसके बल से विद्या सिद्ध कर ली। भूधर भजन सौरभ ६५
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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