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दीनों मंत्र सुलोचना, सुनि प्रानी रे ! विंध्यश्रीको जोड़ सीख सुनि प्रानी रे! गंगादेवी अवतरी, सुनि प्रानी
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रे !
सर्प डसी थी सोई, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥ ७ ॥
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रे !
रे !
८ ॥
रे !
चारुदत्तपै वनिकने, सुनि प्रानी पायो कूपमँझार, सीख सुनि प्रानी पर्वत ऊपर छागने सुनि प्रानी रे ! भये जुगम सुर सार, सीख सुनि प्रानी रे! ॥ नाग नागिनी जलत हैं, सुनि प्रानी रे! देखे पासजिनिंद सीख सुनि प्रानी मंत्र देत तब ही भये, सुनि प्रानी रे ! पदमावति धरनेंद्र, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥ ९ ॥ चहलेमें हथिनी फँसी, सुनि प्रानी रे ! खग कीनों उपगार, सीख सुनि प्रानी रे ! भव लहिकै सीता भई, सुनि प्रानी रे ! परम सती संसार, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥ १० ॥ जल मांगै शूली चढ्यो, सुनि प्रानी रे ! चोर कंठ-गत प्रान, सीख सुनि प्रानी रे ! मंत्र सिखायो सेठने, सुनि प्रानी रे ! लह्यो सुरग सुख - थान, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥। ११ ॥ चंपापुरमें ग्वालिया, सुनि प्रानी रे! घोखै मंत्र महान, सीख सुनि प्रानी रे ! सेठ सुदर्शन अवतर्यो, सुनि प्रानी रे ! पहले भव निश्वान, सीख सुनि प्रानी रे! ॥ १२ ॥ मंत्र महातमकी कथा, सुनि प्रानी रे ! नामसूचना एह सीख सुनि
प्रानी
रे !
भूधर भजन सौरभ
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