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(४८) पंच नमोकारमंत्र-माहात्म्य की ढाल श्रीगुरु शिक्षा देत हैं, सुनि प्रानी रे! सुमर मंत्र नौकार, सीख सुनि प्रानी रे! लोकोत्तम मंगल महा, सुनि प्रानी रे! अशरन-जन-आधार, सीख सुनि प्रानी रे!॥१॥ प्राकृत रूप अनादि है, सुनि प्रानी रे! मित अच्छर पैंतीस, सीख सुनि प्रानी रे! पाप जाय सब जापत, सुनि प्रानी रे! भाष्यो गणधर ईश, सीख सुनि प्रानी रे!॥२॥ मन पवित्र करि मंत्रको, सुनि प्रानी रे! सुमरै शंका छोरि, सीख सुनि प्रानी रे! वांछित वर पावै सही, सुनि प्रानी रे! शीलवंत नर नारि, सीख सुनि प्रानी रे! ॥३॥ विषधर-वाघ न भय करै, सुनि प्रानी रे! विनसैं विघन अनेक, सीख सुनि प्रानी रे! व्याधि विषम-वितर भ®, सुनि प्रानी रे! विपत न व्यापै एक, सीख सुनि प्रानी रे!॥४॥ कपिको शिखरसमेदपै, सुनि प्रानी रे! मंत्र दियो मुनिराज, सीख सुनि प्रानी रे! होय अमर नर शिव वस्यो, सुनि प्रानी रे! धरि चौथी परजाय, सीख सुनि प्रानी रे!॥५॥ कह्यो पदमरुचि सेठने, सुनि प्रानी रे! सुन्यो वैलके जीव, सीख सुनि प्रानी रे! नर सुखके सुख भुंजकै, सुनि प्रानी रे! भयो राव सुग्रीव, सीख सुनि प्रानी रे!॥६।।
भूधर भजन सौरभ