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________________ सुधारस से अपनी रखना नहीं धोई तो वह रसना किस काम की (२३)? हे मन ! जिनराज के चरणों को मत भूल (३२, ३३) । उत्सव - भ्रमण - यात्रा आदि मानव को प्रिय लगते हैं अतः कवि इनके माध्यम से प्राणी को धर्म से आत्मा से जोड़ना चाहता है, वह कहता है अरे मन ! चल - , थनापुर की जात (२९) । कभी गमवशरण में जाने की इच्छा प्रकट करता हुआ कहता है - वा पुर के वारणे जाऊँ (२७) । अपनी उत्सवप्रियता के कारण मानव उत्सव - योग्य अवसर ढूँढ़ ही निकालता है। भावी तीर्थंकर का जन्म जगत के कल्याण के लिए बहुत बड़ा निमित्त है इसलिए इस घटना को बहुत बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाना स्वाभाविक है (२) । श्री नेमिनाथजी की असीम करुणा से प्रभावित भक्त अपने कल्याण के लिए उनकी शरण लेता है (११) । कवि ने उनकी (नेमिनाथजी की) वाग्दत्ता राजुल के मन की व्यथा प्रकट करते हुए श्री नेमिनाथ के अनुसरण से शांति पाने का वर्णन किया है। भजनों के हिन्दी अनुवाद के लिए प्रबन्धकारिणी कमेटी के सदस्य श्री ताराचन्द्र जैन एडवोकेट का आभारी हूँ । आशा की जाती है कि प्रस्तुत 'भूधर भजन सौरभ' का जन-जन में प्रचार होगा । पुस्तक का विक्रय मूल्य कम करने के लिए जिन महानुभावों ने आर्थिक सहयोग दिया उनके प्रति आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ । पुस्तक के प्रकाशन में सहयोगी कार्यकर्त्ता एवं जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि., जयपुर धन्यवादार्ह हैं । पुष्पदन्त - शीतलनाथ निर्वाण दिवस अश्विन शुक्ला अष्टमी वीर निर्वाण संवत् २५२५ १७-१०-१९९९ डॉ. कमलचन्द सोगाणी संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति, जयपुर
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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