SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जितेन्द्रिय आराध्य की भक्ति - गुरु की सीख से जिनेन्द्र के प्रति भक्तिभाव जागृत होता है। जिनेन्द्र की भक्ति में जिनेन्द्र के गुणों का स्तवन किया जाता है । जिनेन्द्र का गुणानुवाद आत्मा के शुद्ध स्वरूप का गुणानुवाद है । आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट करना ही तो 'परमात्मत्व' को पाना है, भक्ति का लक्ष्य यही है अत: वह अपने शुद्धत्व को प्रकट करने के लिए उनका आश्रय लेता है, उनका ध्यान करता है जिन्होंने 'शुद्धत्व' प्रकट कर लिया है। वह उनके गुणों को पहचानने-समझने का प्रयास करता है। वे मुक्ति का मार्ग बतानेवाले हैं (५), अज्ञान का नाश करनेवाले हैं (२६) अर्थात् उन्होंने स्वयं अपने अज्ञान का नाशकर, मुक्ति प्राप्त कर हमें उसका मार्ग बताया है। उनका नाम लेने से पापों का/अवांछित स्थितियों का परिहार हो जाता है (२५) । इसलिए भक्त कहता है . स्वामी ! आपकी शरण हो सच्चों है । सार्थक है (६१) आमना करुणा से सराबोर हैं (७), आप मुझ पर भी करुणा कीजिए (४१) । मैं कोई हाथी-घोड़ेधन-सम्पत्ति नहीं चाहता (८, ९), मैं तो बस यह चाहता हूँ कि जब तक मोक्ष न पाऊँ तब तक भव-भव में मुझे आपकी शरण मिले (४३), आपकी भक्ति का सुअवसर मिले (१,८,९,२४) जिससे मेरी बंध- दशा मिट जाय । आपका सुयश सुनकर ही मैं आपकी शरण में आया हूँ (४२), आपकी शान्त- वीतराग छवि देखकर मेरा पुराना चला आ रहा मिथ्यात्व/अज्ञानरूपी ज्वर टूट गया। मेरे नयनों को आपको वीतरागी मुद्रा के दर्शन की आदत बन गई है (३५)। मैं अब तक अज्ञान-दशा में था और ज्ञान बिना भव-वन में भटक रहा था (५९), मैंने अब तक आपकी महिमा नहीं जानी थी (२५, ६), अब आपकी महिमा जानी (३६) तो आज मेरी आत्मा पावन/पवित्र हो गई (३४)। धर्म की कसौटी - अब मैं समझ गया हूँ कि जो अठारह दोष-रहित हैं वे मेरे देव हैं, जो लोभ-रहित हैं वे मेरे गुरु हैं और जो हिंसारहित है - जीवदया से युक्त है वह मेरा धर्म है (४०, ६६, ६९) । ये चारों - अरहन्त-सिद्ध (देव), साधु (गुरु) और अहिंसा धर्म ही मेरे लिए शरण हैं (४०) अन्य कोई नहीं। इनकी शरण ही सहाई है (३१)। इनकी महिमा का वर्णन न शेष-सुरेश-नरेश कर सके (३८) न मेरी जीभ ही उनका वर्णन करने में समर्थ है (२, ४) । किन्तु फिर भी मैं अपनी जिह्वा को समझाता हूँ कि हे मेरी रसना ! तू ऋषभ जिनेन्द्र का निरन्तर स्मरण कर (३, ४), श्री नेमिनाथ का नाम नित्य भज (११), यदि भजन *
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy