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________________ (३३) राग पंचम जिनराज ना विसारी, मति जन्म वादि हारो। नर भी आसान नाहिं, देखो सोच समझ वारो॥जिनराज.॥ सुत मात तात तरुनी, इनसौं ममत निवारो। सबहीं सगे गरजक, दुखसार नहिं निहारो॥१॥जिनराज.॥ जे खायं लाभ सब मिलि, दुर्गतमैं तुम सिधारो। नट का कुटंब जैसा यह खेल यों विचारो॥ २॥ जिनराज.॥ नाहक पराये काजै, आपा नरकमैं पारो। 'भूधर' न भूल जगमैं, जाहिर दगा है यारो॥३॥जिनराज.॥ हे जीव! श्री जिनराज को कभी न भूलो। अपने जनम को वृथा/तिरर्थक न करो। यह नरभव आसान नहीं है, इसका विवेकपूर्वक उपयोग करो। पुत्र, माता, पिता, स्त्री इनसे ममत्व छोड़ो। ये सब अपने स्वार्थ के साथी हैं। आपके दुःख व पीड़ा में ये साथी नहीं होते, सहयोगी भी नहीं होते। लाभ के समय सब मिल जाते हैं और दुर्गति में, दुःख में तुम अकेले होते हो। यह कुटुंब नट का-सा खेल है। इस तथ्य पर तनिक विचार करो। व्यर्थ ही दूसरों के कार्यवश स्वयं को नरकगति में डालते हो । भूधरदास कहते हैं कि यह जगत सरासर/प्रत्यक्षतः एक धोखा है, इस सत्य को तनिक भी मत भूलो। वादि = व्यर्थ । ४२ भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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