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________________ (२८) राग ख्याल थांकी कथनी म्हानै प्यारी लगै जी, प्यारी लगै म्हारी भूल भगै जी। तुमहित हांक बिना हो श्रीगुरु, सूतो जियरो काई जगै जी॥ मोहनिधूलि मलि म्हार माधे, तीन रान म्हारा मोह ठगै जी। तुम पद ढोकत सौस झरी रज, अब ठगको कर नाहिं वगै जी॥१॥ टूट्यो चिर मिथ्यात महाज्वर, भागां मिल गया वैद मगै जी। अन्तर अरुचि मिटी मम आतम, अब अपने निजदर्व पगै जी॥२॥ भव वन भ्रमत बढ़ी तिसना तिस, क्योंहि बुझै नहिं हियरा दगै जी। 'भूधर' गुरु उपदेशामृतरस, शान्तमई आनंद उमगै जी ।।३।। हे भगवन ! आपकी दिव्य-ध्वनि हमको प्रिय लगती है। वह इसलिए प्रिय भी लगती है कि उसको सुनकर हमारी भूल दूर हो जाती है । तुम्हारे सचेत करनेवाले संबोधन के बिना हे भगवन ! मेरा यह सुप्त ज्ञान कैसे जागृत हो? मेरे मस्तक पर मोह की धूलि (भस्म) डालकर यह मोहनीय कर्म मेरे रत्नत्रय की हानि करता है। जैसे ही आपके चरणों में नमन करने हेतु शीश झुका कि वह धूल झड़कर नीचे गिर जाती है और फिर ठग द्वारा लूटने की कोई क्रिया कारगर नहीं हो पाती अथवा अब ठग का हाथ मुझे पकड़ नहीं पाता । भाग्य से मझे राह में ही ऐसे चिकित्सक से भेंट हो गई है, जिसके कारण मेरा चिरकाल से चला आ रहा मिथ्यात्व (दृष्टि दोष) का ज्वर मिट गया है। अपने आत्मा की ओर बरती जा रही उपेक्षा, अरुचि अब मिट गई है और अपने निज आत्मद्रव्य में तल्लीनता, एकाग्रता होने लगी है। भूधरदास कहते हैं कि इस भव--बन में भटकते हुए हृदय तृष्णा (प्यास) से शुष्क हो रहा है वह तृष्णा (प्यास) गुरु-उपदेशरूपी अमृतरस से शान्ति और आनन्द की वृद्धि होने पर शान्त हो जाती है, मिट जाती है। वगै (वगणो) .. पकड़ना, लूटना। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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