SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७) राग सोरठ वा पुरके वारौँ जाऊं ॥टेक ॥ जम्बूद्वीप विदेहमें, पूरव दिशि सोहै हो। पुंडरीकिनी नाम है, नर सुर मन मोह हो॥१॥वा पुर. ॥ सीमंधर शिवके धनी, जहं आप विराजै हो। बारह गण बिच पीठपै, शोभानिधि छाजे हो॥२॥या पुर.॥ तीन छत्र माथै दिपैं, वर चामर वीजै हो। कोटिक रतिपति रूपपै, न्यौछावर कीजै हो॥३॥ वा पुर.॥ निरखत विरख अशोकको, शोकावलि भाजै हो। वाणी वरसै अमृत सी, जलधर ज्यों गाजै हो॥४॥वा पुर.॥ बरसैं सुमन सुहावने, सुर दुन्दभि गाजै हो। प्रभु तन तेज समूहसौं, शशि सूरज लाजै हो।॥ ५॥ वा पुर. ॥ समोसरन विधि वरन , बुधि वरन न पावै हो। सब लोकोत्तर लच्छमी, देखें बनि आवै हो॥६॥ वा पुर.॥ सुरनर मिलि आ4 सदा, सेवा अनुरागी हो। प्रकट निहारे नाथकों, धनि वे बड़भागी हो ॥ ७॥वा पुर.॥ 'भूधर' विधिसौं भावसौं, दीनी त्रय फेरी हो। जैवंती वरतो सदा, नगरी जिन केरी हो॥८॥वा पुर. । (मेरो इच्छा है कि) मैं उस नगरी के द्वार पर जाऊँ जो जंबू द्वीप के विदेह क्षेत्र में पूर्व दिशा की ओर, मनुष्य और देवों के मन को मोहनेवाली पुंडरीकनी नगरी के नाम से सुशोभित हो रही है । जहाँ बारह गणधरों के बीच उच्च आसन भूपर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy