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________________ ( २० ) नेमिनाथजी की विनती २२ त्रिभुवनगुरु स्वामी जी, करुणानिष्टि नामी जी ! सुनि अंतरजामी, मेरी वीनतीजी ॥ १ ॥ मैं दास तुम्हारा जी, दुखिया बहु भारा जी। दुख मेटनहारा, तुम जादोंपती जी ॥ २ ॥ भरम्यो संसारा जी, चिर कहिं सार न सारे, चहुँ गति विपति - भंडारा जी। डोलियो जी ॥ ३ ॥ दुख मेरु समाना जी, सुख सरसों दाना जी । अब जान धरि ज्ञान, तराजू तोलिया जी ॥ ४ ॥ थावर तन पाया जी, त्रस नाम धराया जी । कृमि कुंथु कहाया, मरि भँवरा हुवा जी ॥ ५ ॥ पशुकाया सारी जी, नाना विधि धारी जी । जलचारी थलचारी, उड़न पखेरु हुवा जी ॥ ६ ॥ नरकनके माहीं जी, दुख ओर न काहीं जी । अति घोर जहाँ है, सरिता खार की जी ॥ ७ ॥ पुनि असुर संघारै जी, निज वैर विचारें जी । मिलि बांधै अर मारैं, निरदय नारकी जी ॥ ८ ॥ मानुष अवतारै जी, रह्यो गरभमँझार जी | रटि रोयो जैनमत, वारें मैं घनों जी ॥ ९ ॥ जोवन तन रोगी जी कै विरहवियोगी जी । फिर भोगी बहुविधि, विरधपनाकी वेदना जी ॥ १० ॥ सुरपदवी पाई पाई जी, रंभा उर लाई जी । तहाँ देखि पराई, संपति झूरियो जी ॥ ११ ॥ भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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