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________________ (१७) देखो गरब-गहेली री हेली! जादोंपतिकी नारी ।। टेक॥ कहां नेमि नायक निज मुखसौं, टहल कहै बड़भागी। तहां गुमान कियो मतिहीनी, सुनि उर दौसी लागी॥१॥ देखो.॥ जाकी चरण धूलिको तरसैं, इन्द्रादिक अनुरागी। ता प्रभुको तन-वसन न पीड़े, हा! हा! परम अभागी॥२॥ देखो.॥ कोटि जनम अघभंजन जाके, नामतनी बलि जइये। श्री हरिवंशतिलक तिस सेवा, भाग्य बिना क्यों पइये॥३॥ देखो.॥ धनि वह देश धन्य वह धरनी, जग में तीरथ सोई। 'भूधर' के प्रभु नेमि नवल निज, चरन धरे जहां दोई॥ ४॥ देखो.॥ हे सहेली! यदुपति (नेमिनाथ) को नारी की गर्वोन्मत्तता को देखो। कहाँ तो उस बुद्धिहीना को यह गर्व था - मैं इतनी भाग्यशाली हूँ कि नेमिनाथ अपने मुख से मुझे सेवा हेतु कहेंगे। पर जब नेमिकुमार का हाल सुना तो उसका हृदय आग सा झुलस उठा। उनके तन पर कपड़ों को भी पीड़ा नहीं है अर्थात् वे नग्न दिगम्बर हो गए। इन्द्रादिक सरीखे भक्त भी जिसकी चरणधूलि के लिए तरसते हैं। हा हा, वह राजुल कितनी अभागिन है ! हरिवंश-तिलक, श्रेष्ठ, भगवान नेमिनाथ की सेवा-भक्ति का अवसर बिना भाग्य के प्राप्त नहीं होता। ऐसे पापों का नाश करनेवाले के नाम पर करोड़ों जन्मों की बलिहारी है। भूधरदास कहते हैं कि सुन्दर नेमिकुमार जहाँ अपने दोनों चरण धरते हैं वह देश धन्य है, वह धरती धन्य है, वह स्थान जगत में तीर्थरूप में सुशोभित है। दौसी = (दव-सी) दावाग्नि-सी। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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