SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६ ) राग काफी होरी अहो बनवासी पिया तुम क्यों छारी अरज करै राजुल नारी । तुम तो परम दयाल सबन के, सबहिन के हितकारी ॥ अरज. ॥ मो कठिन क्यों भये सजना, कहीये चूक हमारी । तुम बिन एक पलक पिया, मेरे जाय पहर सम भारी । क्यों करि निस दिन भर नेमजी, तुम तौ ममता डारी ॥ १ ॥ अरज. ॥ जैसे रैनि वियोगज चकई तौ बिलपै निस सारी । आसि बांधि अपनी जिय राखै प्रात मिलयो या प्यारी ।। मैं निरास निरधार निरमोही जिउ किम दुख्यारी ।। २ ।। अरज. ॥ अब ही भोग जोग हौ बालम देखौ चित्त विचारी । आगे रिषभ देव भी ब्याही कच्छ-सुकच्छ कुमारी ॥ सोही पंथ गहो पीया पाछै हां ज्यो संजम धारी ॥ ३ ॥ अरज. ॥ जैसे बिरहै नदी मैं व्याकुल उग्रसैन की बारी । धनि धनि समदबिजै के नंदन बूढत पार उतारी ॥ सो ही किरपा करौ हम उपरि 'भूधर' सरण तिहारी ॥ ४ ॥ अरज. ॥ हे भगवान नेमिनाथ ! हे वनवासी पिया, तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया? राजुल ( नामकी नारी) आपसे यह अरज करती है। आप तो सभी जीवों के प्रति अत्यन्त दयालु हो, सबका हित करनेवाले हो फिर मेरी ओर ही इतने कठोर क्यों हो गए? कहिए .. क्या हमारी कोई चूक / गलती हो गई है ? हे प्रिय ! तुम्हारे बिना एकएक पल का समय भी एक-एक प्रहर के समान भारी / बड़ा लग रहा है, जैसेतैसे रात दिन बीत रहे हैं। हे प्रियतम नेमिनाथ! आपने तो सारी ममता छोड़ दी । - चकवी अपने प्रिय के वियोग के कारण रातभर विलाप करती है और आशावान होकर अपने को ढाढस देती है कि सुबह होते ही उसका प्यारा चकवा भूधर भजन सौरभ १७
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy