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________________ प्रस्तावना करुणा से भरपूर वीतरागी तीर्थंकरों ने अहिंसा और समता के ऐसे उदात्त जीवन-मूल्यों का सृजन किया जिसके आधार से व्यक्ति जैविक आवश्यकताओं से परे देखने में समर्थ हुआ और समाज विभिन्न क्रिया-कलापों में आपसी सहयोग के महत्व को हृदयंगम कर सका। तीर्थंकरों की करुणामयी वाणी ने व्यक्तियों के हृदयों को छूआ और समाज में एक युगान्तकारी परिवर्तन के दर्शक हुए। नवजागरण की दुन्दुभि बी शाकाहार क्रान्ति, आध्यात्मिक मानववाद की प्रतिष्ठा, प्राणी-अहिंसा की लोक-चेतना, लैंगिक समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, जीवन-मूल्य-संप्रेषण के लिए लोक-भाषा का प्रयोग - ये सब समाज में तीर्थंकरों/महात्माओं के महनीय व्यक्तित्व से ही हो सका है। यहाँ यह लिखना अप्रासंगिक नहीं होगा कि जीवन में भक्ति का प्रारंभ इन शुद्धोपयोगी, लोककल्याणकारी तीर्थंकरों के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन से होता है और उसकी (भक्ति की) पराकाष्ठा वीतरागता-प्राप्ति में होती है। दूसरे शब्दों में, तीर्थंकरों की शैली में जीवन जीना उनके प्रति कृतज्ञता की पराकाष्ठा है। भक्ति उसका प्रारंभिक रूप है। प्रस्तुत पुस्तक 'भूधर भजन सौरभ' में भक्त कवि भूधरदासजी के लोकभाषा में रचित ८५ भजनों, स्तुतियों, विनत्तियों का संकलन किया गया है। इसका उद्देश्य मनुष्यों/पाठकों में जिन भक्ति/प्रभु भक्ति को सधन बनाना है जिससे वे अपने नैतिक-आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ प्राणिमात्र के कल्याण में संलग्न हो सकें । इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन्द्रियों की दासता मनुष्य/व्यक्ति के नैतिक-आध्यात्मिक विकास को अवरुद्ध करती है, जिसके कारण व्यक्ति पाशविक वृत्तियों में ही सिमटकर जीवन जीता है। जीवन की उदात्त दिशाओं के प्रति वह अन्धा बना रहता है । मनुष्य/व्यक्ति के जीवन में भक्ति का उदय उसको जितेन्द्रिय आराध्य के सम्मुख कृतज्ञता-ज्ञापन के लिए खड़ा कर देता है, जिसके फलस्वरूप वह इन्द्रियों से परे समतायुक्त जीवन के दर्शन करने में समर्थ होता है । जब वह आराध्य की तुलना अपने से करता है, तो उसको अपने आराध्य की महानता और अपनी तुच्छता का भान होने लगता है। वह आराध्य के प्रति
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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