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________________ राग बिलावल रटि रसना मेरी ऋषभ जिनन्द, सुर नर जच्छ चकोरन चन्द ॥टेक॥ नामी नाभि नृपति के बाल, मरुदेवी के कुंवर कृपाल॥१॥रटि.॥ पूज्य प्रजापति पुरुष पुरान, केवल-किरन धरै जगभान॥२॥रटि.।। नरकनिवारन विरद विख्यात, तारन-तरन जगत के तात ।। ३॥रटि.॥ 'भूधर' भजन किो निस्वाह, श्रीपद-पदम अंतर हो जाइ॥४॥रटि. ॥ हे मेरी रसना, तू सुर-नर-यक्षरूपी चकोर की भाँति, ऋषभ जिनेन्द्ररूपी चन्द्र को निरन्तर स्मरण कर, जप । कृपानिधान वे (ऋषभ) राजा नाभिकुमार और माता मरुदेवी के बालक हैं, पुत्र हैं। वे पुराणपुरुष पूज्य हैं, प्रजा के पालक हैं और जगत को प्रकाशित करनेवाले केवलज्ञानरूपी सूर्य की किरणों के धारक हैं। नरक से निवारण करना, बचाना आप की विशेषता है, गुण है। हे पूज्य! इस संसारसमुद्र से आप ही तारनेवाले हैं। भूधरदास कहते हैं कि भगवान के चरण-कमल मेरं ध्यान के केन्द्र बन जायें अर्थात् उनके चरण-कमलों पर भ्रमर के समान (जैसा भ्रमर का कमल के प्रति अनुराग होता है) अनुराग हो जाये। उनके भजन-स्मरण करने से ही अपना निर्वाह हो सकेगा। भूथर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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