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( ८४ ) राग धमाल सारंग
हूं तो कहा करूं कित जाऊँ, सखी अब कासौं पीर कहूं री ! ॥ टेक ॥ सुमति सती सखियनिके आगें पियके दुख परकासै। चिदानन्दवल्लभ की वनिता, विरह वचन मुख भासै ॥ १ ॥ हूं तो ॥ कंत बिना कितने दिन बीते, कौंलौं धीर धरौ री। पर घर हाँडै निज घर छांडै, कैसी विपति भरौं री ॥ २ ॥ हूं तो. ॥ कहत कहावत में सब यों ही, वे नायक हम नारी ! पै सुपनैं न कभी मुँह बोले, हमसी कौन दुखारी ॥ ३ ॥ हूं तो. ॥ जइयो नाश कुमति कुलटाको, बिरमायो पति प्यारो । हमसौं विरचि रच्यो रँग वाके, असमझ ( ? ) नाहिं हमारी ॥ ४ ॥ हूं तो. ॥
सुंदर सुघर कुलीन नारि मैं, क्यौं प्रभु मोहि न लोरें । सत हू देखि दया न धेरै चित, चेरीसों हित जोरें ॥ ५ ॥ हूं तो. ॥ अपने गुनकी आप बड़ाई, कहत न शोभा लहिये । ऐरी ! वीर चतुर चेतनकी, चतुराई लखि कहिये ॥ ६ ॥ हूं तो. ।। करिहौं आजि अरज जिनजीसों, प्रीतमको समझावैं । भरता भीख दई गुन मानौं, जो बालम घर आवैं ॥ ७ ॥ हूं तो. ।। सुमति वधू यौं दीन, दुहागन, दिन-दिन झुरत निरासा । 'भूधर' पीउ प्रसन्न भये विन, बसै न तिय घरवासा ॥ ८ ॥ हूं तो. ॥
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(कुमति के वशीभूत होकर यह आत्मा सुमति से विमुख हो रहा है यह सुमति की विडंबना की कहानी है, यह कहानी उस ही के मुँह से कहलायी गई है | )
भूधर भजन सौरभ
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