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________________ (७९) वे कोई अजब तमासा, देख्या बीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेका-सा ।। एकौंके घर मंगल गावै, पूरी मनकी आसा । एक वियोग भरे बहु रोवै, भरि भरि नेन निरासा ॥१॥ व काई.॥ तेज तुरंगनिपै चढ़ि चलते, पहिरै मलमल खासा। रंक भये नागे अति डोलैं, ना कोई देय दिलासा ॥२॥ वे कोई. । तरक राजतखत पर बैठा, था खुशवक्त खुलासा। ठीक दुपहरी मुद्दत आई, जंगल कीना वासा॥३॥वे कोई.॥ तन धन अथिर निहायत जगमें, पानीमाहि पतासा। 'भूधर' इनका गरब करें जे, धिक तिनका जनमासा॥४॥ वे कोई.॥ अरे, इस संसार में एक अजब तमाशा देखा, जो सपने की भाँति हैं । एक के घर मनोवांछा पूर्ण होती है, मंगल गीत गाए जाते हैं और दूसरे के घर वियोग होता है तो रुदन होता है, उनकी आँखों में निराशा दिखाई देती है। ___ एक (व्यक्ति) तेज धोड़े पर, अच्छी मखमली पोशाक पहिने चलता है, तो दूसरा निर्धन होकर नग्न चूमता है, उसको कोई किसी प्रकार की सांत्वना, सहारा या ढाढस नहीं देता। एक व्यक्ति प्रात:काल राजसिंहासन पर आसीन था, उस समय अत्यन्त खुश था. दोपहर होते ही वह घड़ी आ गई कि उसको सब वैभव छोड़कर जंगल में रहने को विवश होना पड़ा। __इस जगत में तन- धन आदि सब जल में बतासे की भाँति है, इन पर/इनके लिए जो कोई गर्व करता है, उसका जन्म धिक्कार है, तिरस्कृत हैं। जनमासा - मनुष्य जन्प। भूधर भजन सौरभ १०९
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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