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________________ (७८) राग बङ्गाला जगमें श्रद्धानी जीव जीवनमुकत हैंगे॥टेक ।। देव गुरु सांचे मार्ने, सांचो धर्म हिये आनैं। ग्रन्थ ते ही सांचे जानें, जे जिन उकत हैंगे।।१।। जगमें.॥ जीवनकी दया पालैं, झूठ तजि चोरी टाले । परनारी भालैं मैंन जिनके लुकत हैं गे ।। २॥ जगमें.॥ जीयमैं सन्तोष धारे, हिमैं समता विचारै। आगैंको न बंध पारें, पाईंसौं चुकत हैंगे॥३॥ जगमें. ।। बाहिज क्रिया आराधैं, अन्दर सरूप साधैं। 'भूधर' ते मुक्त लाथें, कहूं न रुकत हैंगे॥४॥ जगमें. ।। इस जगत में जो सम्यकदृष्टि जीव हैं वे निश्चित रूप से जीवन से अर्थात् संसार से मुक्त होंगे; वे मोक्षगामी हैं, भव्य हैं। जो सच्चे देव, सच्चे गुरु को माने, जो सच्चे धर्म को हृदय में धारण करे, उनको ही सत्य माने व जाने, वे ही उक्त प्रकार के 'जिन' (मोक्षगामी) होंगे। जो जीवों के प्रति दयाभाव रखे व उसका पालन करे, असत्य-झूठ का त्याग करें, चोरी को टाले अर्थात् उससे दूर रहे, जिनके नैन पर- नारी पर कुदृष्टि नहीं रखते, जो ऐसा करने से बचते हैं वे ही मोक्षगामी होंगे। जो जीवन में संतोष-वृत्ति को धारण करते हैं, हृदय में समताभाव रखते हैं, वे आस्रव को रोककर, संवर धारणकर नवीन कर्मों का बंध नहीं करेंगे तथा पिछले कर्मों की निर्जरा करेंगे वे ही मोक्षगामी होंगे। जो बाहिर में निश्चल क्रिया का साधनकर, अंतरंग में अपने स्वरूप का साधन करते हैं, भूधरदास कहते हैं कि वे संसार-समुद्र को अवश्य लाँघुगे, कहीं न रुकेंगे अर्थात् निश्चय से मुक्त होंगे। लुकत = छिपना, बचना। १०८ भूथर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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